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________________ १० वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना हमारे इस अनुमान के समर्थक इन्हीं उल्लेखों के पिछले वे शब्द हैं जो महावीर के शिष्यों में झगड़ा होने की सूचना देते हैं । महावीर की विद्यमानता से लेकर आज तक जैन श्रमणसंघ में जो जो छोटे बड़े मतभेद हुए हैं, उन सबका इतिहास और स्मृतियाँ जैन सूत्रग्रंथों में दी हुई मिलती है" । महावीर को केवल ज्ञान हुए १४ वर्ष बीत चुके थे तब सबके पहले निर्ग्रथ जमालि ने महावीर के साथ विरोध खड़ा किया और वह उनसे अलग हो गया था, जिसका जैनग्रंथों में विस्तृत वर्णन है । महावीर के केवल जीवन के सोलहवें वर्ष में भी तिष्यगुप्त नामक एक साधु ने कुछ मतभेद खड़ा किया था, जिसका सविस्तर वर्णन जैन लेखकों ने किया है । महावीर की जीवित अवस्था में उपर्युक्त दो साधु उनसे विरुद्ध हुए थे, और इनके निर्वाण के बाद भी २१४, २२०, २२८, ५४४, ५८४ इन वर्षों में क्रमशः आषाढ़, अश्वमित्र, गांगेय, रोहगुप्त और गोष्ठामाहिल ये पाँच पुरुष जैन प्रवचन में भेद करनेवाले हुए जिन्हें जैन शास्त्रकारों ने "निह्नव" नाम से उद्घोषित किया है । यदि महावीर के निर्वाण के अनंतर ही निर्ग्रथ श्रमणसंघ में जबरदस्त मतभेद पड़ा होता है - जैसा कि बौद्धों ने लिखा है - तो जैन ग्रंथों में इसका अवश्य ही उल्लेख होता, पर जैन ग्रंथों में इस विषय की सूचना तक नहीं है, इससे विपरीत जैन साहित्य में निर्वाण से १६० वर्ष पर्यंत महावीर की निर्ग्रथ-परंपरा में परमशांति और सुलह रहने के उल्लेख मिलते हैं, " इसलिये १०. जमालि संबंधी संपूर्ण वृत्तांत भगवती सूत्र के नवें शतक के ३३ वें उद्देश में दिया है और आवश्यक निर्युक्ति विशेषावश्यक भाष्य, आवश्यक चूर्णि तथा उत्तराध्ययनवृत्ति आदि प्राचीन ग्रंथों में जमालि से लेकर गोष्ठामाहिल पर्यंत के ७ निह्नवों की उत्पत्ति लिखी है । स्थानांग और औपपातिक मूल सूत्र में भी इन सात निह्नवों के नाम लिखे मिलते हैं । ११. स्थविर यशोभद्र पर्यंत महावीर का धर्मशासन एकाचार्य की सत्ता में ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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