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________________ १८० वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना भी खारवेल के ही लेख में पाया जाता है । खारवेल के पुत्र वक्रराय और पौत्र विदुहराय के नाम भी कलिंग के उदयगिरि पर्वत की गुफा में पाए गए है और खारवेल के आदिपुरुष चेटक का नाम भी उसके लेख के प्रारंभ में दृष्टिगत हो रहा है । मौर्यराज्य की दो शाखा होने के संबंध में पुरातत्त्वज्ञों ने पहले ही अनुमान कर लिया था, जिसको थेरावली के लेख से समर्थन मिला है। स्कंदिलाचार्य के सिद्धांतोद्धार का उल्लेख नंदीचूर्णि आदि अनेक प्राचीन ग्रंथों में मिलता ही है, गंधहस्ती के सूत्र विवरणों के अस्तित्व का साक्ष्य शीलांक की आचारांग टीका दे रही है२४ और उनकी तत्त्वार्थ भाष्य रचना के विषय "तेरसमे च वसे सुपवत विजयिचके कुमारी पवते अरहितेय [1] पखिमव्यसंताहि काय्यनिसीदीयाय यापजावकेहि राजभितिनि चिनवतानि वो सासितानि वो सासितानि [1] पूजनि कत उवासा खारवेल सिरिना जीवदेवसिरिकल्पं राखिता [I]" (बि० ओ० प० पु० ४ भा० ४) २३. हाथीगुंफा लेख की १६वीं पंक्ति में अंगों का उद्धार करने के संबंध में उल्लेख है, ऐसा विद्यावारिधि के० पी० जायसवालजी का मत है । आपके वाचनानुसार वह उल्लेख इस प्रकार है "मुरियकालवोर्छिनं च चोयट्टि - अंग-सतिकं तुरियं उपदियति [1]" अर्थात् मौर्यकाल में विच्छेद हुए चोसट्टि (चौसठ अध्यायवाले) अंगसप्तिक का चौथा भाग फिर से तैयार करवाया । पर मैं इस स्थल को इस प्रकार पढ़ता हूँ . "मुरियकाले वोर्छिने च चोयट्ठिअग-सतिके तुरियं उपादयति [I]" अर्थात् मौर्यकाल के १६४ वर्ष के बीतने पर तुरंत (खारवेल ने) उपर्युक्त कार्य किया । २४. गंधहस्तिकृत सूत्रविवरण अब किसी जगह नहीं मिलते, संभवतः वे सदा के लिये लुप्त हो गए हैं, पर ये विवरण किसी समय विद्वद्भोग्य साहित्य में गिने जाते थे इसमें कोई संदेह नहीं है । विक्रम की दशवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध की कृति आचारांग टीका में उसके कर्ता शीलाचार्य गंधहस्तिकृत विवरण का उल्लेख इस प्रकार करते हैं - I " शस्त्रपरिज्ञाविवरणमतिबहुगहनं च गंधहस्तिकृतम् । तस्मात् सुखबोधार्थं, गृह्णाम्यहमञ्जसा सारम् ||३||" Jain Education International ( कलकत्तामुद्रित आचारांग टीका ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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