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________________ जैन काल-गणना-विषयक एक तीसरी प्राचीन परंपरा १८१ में भी अनेक मध्यकालीन ग्रंथकारों ने उल्लेख किए हैं। इसलिये इस थेरावली में वर्णित खास घटनाओं की सत्यता के संबंध में शंका करने का हमें कोई अवसर नहीं है । हाँ, इसमें यदि कुछ शंकनीय स्थल हो तो वह घटनावली का सत्ता-समय हो सकता है । इसमें अनेक घटनाओं के अतिरिक्त अनेक राजाओं और आचार्यों की सत्ता और उनके स्वर्गवास के सूचक जो संवत्सर दिए हुए हैं उनमें कतिपय संवत्सर अवश्य ही चिंतनीय है, पर जब तक थेरावली की मूल प्रति हस्तगत नहीं होती, इस विषय की समालोचना करना निरर्थक है। विद्वानों के विचारार्थ नीचे हम उन घटनाओं की सूची देते हैं जिनका सत्ता-समय थेरावली में स्पष्ट लिखा गया है । घटनावली वीर-गताब्द ★ गौतम इंद्रभूति को केवलज्ञान हुआ । वीर-गताब्द १२ ★ गौतम इंद्रभूति का निर्वाण । वीर-गताब्द १८ शोभनराय का कलिंग के राज्यासन पर आरोहण । वीर-गताब्द २० * आर्य सुधर्मा का निर्वाण । वीर-गताब्द ३१ उदायी ने पाटलिपुत्र नगर को बसाया । वीर-गताब्द ६० ★ नंद राजा का पाटलिपुत्र में राज्याभिषेक । वीर-गताब्द ६४ * मतांतर से आर्य जंबू का निर्वाण । वीर-गताब्द ७० आर्य जंबू का निर्वाण । वीर-गताब्द ७० ★ रत्नप्रभ सूरि द्वारा उपकेश वंश स्थापना । उपर्युक्त पद्य में केवल आचारांग सूत्र के एक अध्ययन-'शस्त्रपरिज्ञा' के विवरण का उल्लेख होने से यह भी कल्पना हो सकती है कि शायद शीलाचार्य के समय तक गंधहस्ति कृत विवरण छिन्न भिन्न हो चुके होंगे । इसी कारण से शीलांक को अंगों की नई टीकाएँ लिखने की जरूरत महसूस हुई होगी । २५. गंधहस्ति कृत तत्त्वार्थभाष्य के संबंध में मध्यकालीन साहित्य में कहीं कहीं उल्लेख है पर इस भाष्य का कहीं भी पता नहीं है । धर्मसंग्रहणी टीका आदि में “यदाह गंधहस्ती-प्राणापानौ उच्छ्वासनिश्वासौ ।" इत्यादि गंधहस्ती के ग्रंथ के प्रतीक भी दिए हुए मिलते हैं, पर इस समय गंधहस्ति कृत कोई भी ग्रंथ उपलब्ध नहीं होता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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