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________________ १४८ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना " णिव्वाणे वीरजिणे, छव्वाससदेसु पंचवरिसेसु । पणमासेसु गदेसु, संजादो सगणिओ अहवा । ''१०४ अर्थात् 'वीर निर्वाण के बाद ६०५ वर्ष और ५ मास के बीतने पर शक राजा हुआ ।' यही बात नेमिचंद्र के 'तिलोय सार' की नीचे की गाथा में भी कही है १०४. ' अहवा' का अर्थ विकल्प दर्शन है । इससे ज्ञात होता है कि गाथोक्त समय के उपरांत उस समय इसके संबंध में दूसरे विकल्प भी थे जिनका यति वृषभ ने ' अहवा' से सूचन किया है और इस प्रसंग पर दूसरी गाथाओं में उनका निरूपण भी किया है । इन मतविकल्पों में एक मान्यता यह थी कि 'वीरनिर्वाण से ४६१ वर्ष के बाद ४६२ में 'शक राजा' उत्पन्न हुआ ।' यह मान्यता विक्रम और शक राजा को एक मानने संबंधी भूल का परिणाम है । जैसे त्रिलोकसार की टीका में माधव चंद्र ने निर्वाण से ६०५ वर्ष पीछे होनेवाले शक राजा को 'विक्रमांक' कहने की भूल की है (" श्रीवीरनाथ निर्वृतेः सकाशात् पंचोत्तरषट्शतवर्षाणि गत्वा पश्चाद्विक्रमांक शकराजोऽजायत ।") वैसे ही इस मान्यतावालों ने विक्रम को शक समझने की भूल की । यति वृषभ के समय में दूसरी मान्यता यह थी कि वीरनिर्वाण के बाद ९७८५ वर्ष और ५ मास बीतने पर शक राजा हुआ था, और तीसरी कल्पना यह थी कि वीर निर्वाण से १४७९३ वर्ष बीतने पर शक राजा हुआ। ये तीनों मत त्रिलोक प्रज्ञप्ति की निम्नलिखित गाथाओं से स्पष्ट होते हैं "वीरजिणे सिद्धिगदे, चउसदइगसट्ठिवासपरिमाणे । कालम्मि अदिक्कते, उप्पन्नो एत्थ सगराओ ॥ अहवा वीरे सिद्धे, सहस्सणवकंमि सगसयसब्भहिए । पणसीदिमि अतीदे, पणमासे संगणिओ जादो || चोद्दससहस्ससगसय तेणउदिवासकालविच्छेदे । वीरेसरसिद्धीदो, उप्पण्णो सगणिओ अहवा ||" इन गाथाओं के प्रतिपादन के अनुसार क्या सचमुच ही यदि वृषभ के समय में वीर और शक के अंतर के संबंध में भिन्न भिन्न मान्यताएँ होंगी ? अथवा इन गाथाओं का कुछ और ही तात्पर्य है ? विद्वानों को इन गाथाओं की पूरी समालोचना करनी चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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