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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
में सत्य नहीं हो सकता ।
देवगण को सत्ताईसवाँ पुरुष कहना भी हमारी समझ में कुछ प्रामाणिकता नहीं रखता । क्योंकि युगप्रधान - क्रम से देवर्द्धिगणि ३२ वें युगप्रधान और गुरुशिष्यक्रम में ३४ वें पुरुष थे । यद्यपि मलयगिरि - व्याख्यात नंदी - थेरावली में बलिस्सह के पहले सुहस्ती का नाम शामिल रख और 'गोविंद' का नाम कम करके देवद्धि को सत्ताईसवाँ पुरुष ठहराया है, और मेरुतुंग संगृहीत थेरावली गाथाओं में सुहस्ती को कम करके गोविंद का नाम कायम रखकर देवद्धि को सत्ताईसवाँ नंबर दिया है, पर हम देखते हैं कि इन दोनों पद्धतियों में एक महत्त्वपूर्ण भूल घुसी हुई है । दोनों थेरावलीकार आर्यमंगू के अनंतर आनंदिल का उल्लेख करते हैं - यह एक स्पष्ट भूल है, क्योंकि मंगू का युगप्रधानत्व तो निर्वाण संवत् ४७० में ही पूरा हो गया था, तब आनंदिल का युगप्रधानत्व पर्याय निर्वाण से ५९७ वर्ष के बाद किसी समय में शुरू हुआ था । अब देखना चाहिए कि मंगू से कम से कम १२७ वर्ष पीछे होनेवाले आर्य आनंदिल मंगू के उत्तराधिकारी युगप्रधान कैसे हो सकते हैं ? इस गड़बड़ का अर्थ हम यही करेंगे कि आर्य मंगू और आनंदिल के बीच के कतिपय युगप्रधानों के नाम इन सूचियों में से छूट गए हैं, इन छूटे हुए नामों का पता भी हम आसानी से लगा सकते हैं । हमारे पास एक सटीक और एक मूल मात्र नंदी की थेरावली है। इन दोनों में आर्य मंगू के पीछे आर्यधर्म, भद्रगुप्त, वज्र और आर्यरक्षित के वर्णन की नीचे लिखित गाथाएँ उपलब्ध होती है
"वंदामि अज्जधम्मं, वंदे तत्तो अ भद्दगुत्तं च । तत्तो अ अज्जवयरं, तवनियमगुणेहिं वयरसमं ॥३१॥ वंदामि अज्जरक्खिय-खमणे रक्खिअचरित सव्वस्से । रयणकरंडगभूओ, अणुओगो रक्खिओ जेहि ||३२||"
- मूल नंदी थेरावली २ |
आचार्य मेरुतुंग के एक उल्लेख से भी ज्ञात होता है कि उनके समय में उक्त गाथाएँ नंदी की थेरावली में मौजूद थीं, देखो निम्नलिखित उल्लेख
होती है
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" स्थविरावल्यां तु आर्यमंगोः परोऽनु आर्यधर्म-भद्रगुप्त-वज्रस्वामि आर्यरक्षिताभिन्नशाखोद्भवा अपि तस्मिन् समये प्रधानपुरुषा इत्युपात्ताः ।"
- विचारश्रेणि पत्र ५ ।
आर्य गोविंद के वर्णन की निम्नलिखित गाथा भी हमारी थेरावली में दृष्टिगत
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