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वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
प्रभावकचरित्र आदि ग्रंथों के लेखों से विद्याधर गच्छ के स्थविर थे ऐसा सिद्ध होता है I (देखो टिप्पण नं० ७२)
विद्याधर गच्छ सुहस्ती की शाखा में था यह बात पहले ही कह दी गई है, यदि नंदी थेरावली महागिरिशाखीय स्थविरों की गुरु-परंपरा होती तो उसमें स्कंदिल को स्थान नहीं मिलता ।
(८) प्रस्तुत थेरावली में ही देवर्द्धिगणि भूतदिन्न स्थविर के वर्णन में लिखते हैं कि 'भूतदिन्न सूरि नागार्जुन ऋषि के शिष्य और नाइल - कुल-वंश की वृद्धि करनेवाले हैं' देखो थेरावली की निम्नलिखित गाथाएँ
"अड्डभरहप्पहाणे, बहुविहसज्झायसुमुणियपहाणे । अणुआगियवरवसभे, नाइलकुलवंसनंदिकरे ॥४४॥
जगभूयहि (हिय) पगब्भे, वंदेऽहं भूयदिन्नमायरिए । भवभयवुच्छेयकरे, सीसे नागज्जुणरिसीणं ॥ ४५ ॥”
- नंदी थेरावली सूत्र २ ।
उपर्युक्त नाइल कुल हमारे विचार में नाइली शाखा का ही नाम है । कतिपय लेखकों ने नाइल कुल का तर्जुमा 'नागेंद्र कुल' भी किया है, पर 'नाइल' का रूप 'नागेंद्र' होने के लिये कोई लाक्षणिक नियम नहीं है । कहीं कहीं 'नाइल' के स्थान में 'नागिल' शब्द प्रयुक्त हुआ देखा गया है और यह ठीक भी है । वस्तुतः 'नाइला' शाखा के लिये, जो कि आर्य वज्रसेन के शिष्य आर्य नाइल से निकली थी, पीछे से नाइलकुल, नाइलगच्छ आदि नाम प्रचलित हुए थे । इसलिये स्थविरावली में जो ' नाइलकुल' का उल्लेख है उसका तात्पर्य सुहस्ती शाखानुगत 'नाइला' शाखा से ही है और नाइलकुल को नागेंद्र कुल मान लिया जाय तब भी बात वही है, क्योंकि नागेंद्रकुल भी सुहस्ती शाखानुगत ही है, इसलिये नाइलकुल या नागेंद्रकुल के स्थविर भूतदिन और इनके गुरु नागार्जुनसूरि देवद्धि के वचन से ही सुहस्ती की परंपरा के सिद्ध होते हैं, यदि देवद्धि महागिरि शाखा के स्थविर होते और उन्होंने नंदी में अपनी गुर्वावली का ही वर्णन किया होता तो नागार्जुन और भूतदिन्न आचार्य का यहाँ उल्लेख नहीं किया
जाता ।
ऊपर के विवेचन से यह बात स्पष्ट हो जायगी कि नंदी की थेरावली देवद्धि की गुर्वावली नहीं है, किंतु भिन्न भिन्न शाखा और कुल के आचार्यों की युगप्रधानावली है । इसलिये इस थेरावली के आधार पर देवर्द्धिगणि को आर्यमहागिरि की शाखा में मानने और इस थेरावली को देवद्धि की गुर्वावली मानने का जो वृद्ध संप्रदाय है वह किसी अवस्था
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