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"गोविंदाणं पि नमो, अणुओगे विउलधारिणिदाणं । निच्चं खंतिदयाणं, परूवणादुल्लभिदाणं ॥४१॥"
- मूल नंदी थेरावली २ |
मलयगिरि की व्याख्यात नंदी थेरावली में उक्त तीनों गाथाएँ नहीं है और संभव है दूसरी टीकाओं में भी ये न हो, पर ये गाथाएँ हैं देवद्धकृत । जिस प्रकार वालभी वाचना के अनुयायियों ने युगप्रधान गंडिका प्रभृति प्रकीर्णक ग्रंथों में अपनी परंपरागत युगप्रधानावली का क्रम दिया है उसी प्रकार देवद्धि जी ने भी इस थेरावली में माथुरी वाचनानुयायी युगप्रधान - थेरावली का वर्णन किया है, इसमें कुल ३१ युगप्रधानों का क्रम वर्णित है, पर जब से देवद्धि को २७ वाँ पुरुष मानने की दंतकथा प्रचलित हुई तब से इस थेरावली में धर्म, भद्रगुप्त, वज्र, आर्यरक्षित और गोविंद के वर्णन की गाथाएँ प्रक्षिप्त समझी जाकर निकाल दी गईं । वस्तुतः उक्त गाथाएँ नंदी की ही हैं और इस हिसाब से देवद्धि २७ वें नहीं पर ३२ वें युगप्रधान ठहरते हैं ।
वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना
दशाश्रुतस्कंधोक्त थेरावली में आर्यसुहस्ती की परंपरा में देवद्धि का नाम आने से वे इसी शाखा के स्थविर थे यह बात मान लेने में कुछ भी विरोध नहीं है, और इस थेरावली की गणना के अनुसार देवर्द्धिगणि २७ वे नहीं किंतु ३४ वें पुरुष प्रतीत होते हैं । पाठकगण के दर्शनार्थ हम दशाश्रुतस्कंधोक्त देवर्द्धिगणि की गुरुपरंपरा नीचे लिख देते हैं
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की गुर्वावली
श्री महावीर
१. आर्य सुधर्मा
२. आर्य जंबू
३. आर्य प्रभव
४. आर्य शय्यंभव
५. आर्य यशोभद्र
६. आर्य संभूतविजय - भद्रबाहु
७. आर्य स्थूलभद्र
८. आर्य सुहस्ती
९. आर्य सुस्थित- सुप्रतिबुद्ध १०. आर्य इंद्रदिन्न
११. आर्य दिन्न
१२. आर्य सिंहगिरि
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१३. आर्य वज्र
१४. आर्य रथ
१५. आर्य पुष्यगिरि
१६. आर्य फल्गुमित्र
१७. आर्य धनगिरि
१८. आर्य शिवभूति
१९. आर्य भद्र
२०. आर्य नक्षत्र
२१. आर्य रक्ष
२२. आर्य नाग
२३. आर्य जेहिल
२४. आर्य विष्णु
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