SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९२ वीर निर्वाण संवत् और जैन काल-गणना अपने आचार के विरुद्ध समझ उन राजकीय दानशालाओं से आहार पानी नहीं लेते होंगे, जिससे गुप्त राजसंकेत से रसोइयों और व्यापारियों की मार्फत जैन साधुओं को आहार वस्त्रादि पहुँचने लगा होगा । महागिरिजी को इस अस्वाभाविक भक्ति के विषय में शंका उत्पन्न हो गई होगी जिससे उन्होंने सुहस्ती से संबंध तोड़ दिया होगा । 44 इस घटना के वर्णन में दान- प्रवर्तक राजा के संबंध में आए हुए " ओदरियमृत्युं स्मरता" ये शब्द और आर्य महागिरि के मुख से निकलते 'अज्जो ! इमं अपुव्वं दीसइ" ये शब्द ही उस समय की विषमता के द्योतक हैं । अच्छे समय की यह घटना होती तो दानगृह खोलनेवाले को "औदरिक मृत्यु" (दुर्भिक्षकृत मृत्यु) का स्मरण करने और आर्य सुहस्ती जैसे राजप्रतिबोधक युगप्रधान के शिष्यों को योग्य आहारोपाधि की प्राप्ति में आर्य महागिरिजी को अपूर्वता दीखने का कोई कारण नहीं था । मेरे ख्याल से तो यह असांभोगिकता' वाली कथा उस दुष्काल के समय की कल्पना है जब कि संप्रति के जीव ने द्रमक के भव में आर्य सुहस्ती के समीप 'कोसंबाहार' में जैन दीक्षा ली थी । पर पिछले लेखकों ने बिंदुसार की इस दुष्काल प्रतिक्रिया को संप्रति की शासन - प्रभावना का अंग मान लिया । भूल अवश्य हुई, पर इसके होने में आश्चर्य नहीं है । लेखकों की दृष्टि के आगे संप्रति ही घूम रहा था और उनके मन में संप्रति के शुभ कामों को ही स्मृति थी । इस दशा में बिंदुसार के एकाध कार्य का संप्रति के कामों में मिल जाने में आश्चर्य क्या हो सकता है ? ऊपर के विवेचनों में हमने दोनों जैन गणनाओं की पारस्परिक संमतता सिद्ध करने की चेष्टा की है। इसकी सफलता के संबंध में कुछ भी कहना हमारे अधिकार के बाहर की बात है । फिर भी यह कहना अनुचित नहीं होगा कि पूर्वोक्त जैन गणनाओं में कुछ भी विरोध या पारस्परिक असंगति नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002752
Book TitleVir Nirvan Samvat aur Jain Kal Ganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy