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पुरस्क्रिया
ऋषि-मुनि एवं देवता हर देश और हर काल में हुए हैं। सोलह वर्ष पूर्व जब मैं शाजापुर आया था तब प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर के निदेशक, अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान् डॉ. सागरमल जैन के दर्शन मुझे इसी रूप में प्राप्त हुए थे। कुछ वर्ष पहले मेरे निवेदन करने पर उन्होंने मुझे श्रीपद्मनदिन्मुनि-प्रणीत 'धम्मरसायणं' का हिन्दी-अनुवाद करने का आदेश दिया था। ईशप्रसाद एवं विराट् प्रकृति की अनुकूलता से यह कार्य आज पूर्ण हो सका है।
'धम्मरसायणं' की मूलप्रति में अनेक स्थानों पर लुप्त पाठ की पूर्ति एवं संस्कृत रूपान्तर के निर्धारण में डॉ. सागरमल जैन ही मेरे पथ-प्रदर्शक एवं निर्देशक रहे हैं। अनुवाद-कार्य में आयीं कठिनाइयों का परिहार भी उन्हीं की अनुकम्पा से सम्भव हो सका है। सत्प्रेरणा, सत्परामर्श, सर्वविध सहयोग, मार्गदर्शन, सौजन्य और वात्सल्य के लिए मैं सर्वदा उनका आभारी रहूँगा।
परम पूज्य पिता श्री राम प्रकाश शर्मा एवं पूजनीया माता श्रीमती मुन्नी देवी को मैं साष्टाङ्ग प्रणाम करता हूँ जिन्होंने बहुविध कष्ट सहकर भी मुझे अध्ययन के लिए सदा प्रेरित किया है। श्रद्धय गुरुवर्य डॉ. केवल कृष्ण आनन्द तथाडॉ. सत्य प्रकाश सिंह चौहान के प्रति मैं श्रद्धावनत हूँ जिनकी गोद में बैठकर मैंने देववाणी की शिक्षा प्राप्त की। अर्धाङ्गिनी श्रीमती आशा शर्मा, पुत्री ध्वनि एवं आस्था तथा पुत्र उत्कर्ष साधुवाद के पात्र हैं जिन्होंने ज्ञानार्जनमें मेरी अहर्निश सहायता कर मेरा पथ सुगम बनाया है।
उनसभी सहयोगियों का भी मैं आभारी हूँ जिनका प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग मुझे इस सत्कार्य में प्राप्त हुआ है। जिनमनीषियों की कृतियों से मुझे अनुवाद-कार्य में सहायता प्राप्त हुई है उनका मैं ऋणी रहूँगा। प्रकाशक संस्था प्राच्य विद्यापीठ के प्रति आभार व्यक्त करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ जिसने इस पुस्तक को प्रकाशित किया है। सुन्दर, साफ-सुथरे एवं आकर्षक मुद्रण के लिए आकृति ऑफसेट (उज्जैन) धन्यवाद के पात्र हैं जिनके परिश्रम से यह पुस्तक आकार ग्रहण कर सकी है।
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