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मुद्रण-सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करने का यथाशक्य प्रयास किया गया है, तथापि कतिपय भूलों का रह जाना सम्भव है। अत: संशोधन एवं परिमार्जन के लिए सुधीजनों के सुझाव सादर आमन्त्रित हैं। शेष, विद्वज्जनही प्रमाण हैं। कविकुलशिरोमणि कालिदास के शब्दों में
आपरितोषाद्विदुषांनसाधुमन्ये योगविज्ञानम्।। बलवदपि शिक्षितानामात्मन्यप्रत्ययंचेतः॥
(अभिज्ञानशाकुन्तलम्, 1.2)
- विनोद कुमार शमा
'उत्कर्ष विजय नगर कॉलोनी, शाजापुर (म.प्र.) 26 दिसम्बर 2009 (शनिवार)
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