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________________ 59 ऋतु में कमलिनी के पत्तों का विनाश करने वाले महाशीतकाल में धैर्यपूर्वक उस प्रचण्ड शीत को सहन करते हैं। धर्मरसायन जलमलमइलिअंगा पावमलविवज्जिया महामुणिणो । आइच्चस्साहिमुहं करंति आदावणं धीरा ||187॥ जलमलमलिनिताङ्गाः पापमलविवर्जिता महामुनयः । आदित्यस्याभिमुखं कुर्वन्ति आतापनं धीराः ॥ 187|| जल - मल से मलिन अंगों वाले किन्तु पाप के मल से रहित वे धीर महामुनि सूर्य के सम्मुख खड़े होकर ग्रीष्मकाल में आतापना लेते हैं। धारंधसारगहिले कापुरीसभयागरे परमभीमे । गुणिणो वसंति रण्णे तरुमूले वरिसयालम्मि ||188ll धारान्धकारगहने कापुरुषभयकरे परमभीमे । मुनयो वसन्ति अरण्ये तरुमूले वर्षाकाले || 188ll वर्षाकाल में वे धीर मुनि घोर अन्धकार से व्याप्त तथा कायर पुरुषों में भय उत्पन्न कर देने वाले परम भीषण अरण्य में वृक्षों के नीचे निवास करते हैं। अणयारपरमधम्मं धीरा काऊण सुद्धसम्मत्ता । गच्छति केई सग्गे केई सिज्यंति धुदकम्मा ॥ 1891 अनगारपरमधर्मं धीराः कृत्वा शुद्धसम्यक्त्वाः । गच्छन्ति केचित् स्वर्गे केचित् सिद्ध्यन्ति धुतकर्माणः ॥ शुद्ध सम्यक्त्व से युक्त परम अनगार धर्म का पालन करके कुछ धीर मुनि स्वर्ग जाते हैं तो कुछ ( मुनि) कर्मों का दाह (नाश) करके सिद्धि को प्राप्त करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002751
Book TitleDharmrasayana
Original Sutra AuthorPadmanandi
AuthorVinod Sharma
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size3 MB
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