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धर्मरसायन
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देवों के जाननेयोग्य आठगुण हैं-अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, कामरूपित्व, ईशित्व तथा वशित्व।
इय अट्ठगुणो देओ जरावाहिविवजिओ चिरंकालं । जिणधम्मस्स फलेण य दिव्वसुहं भुंजएजीओ।।178|| इति अष्टगुणो देवोजराव्याधिविवर्जितश्चिरंकालम्। जिनधर्मस्य फलेन च दिव्यसुखं भुङ्क्ते जीवः ॥
इस प्रकार जीव आठ गुणों से युक्त देव बनकर, दीर्घकाल तक जरा-व्याधि से रहित होकर, जिनधर्म के फल के रूप में दिव्य सुखों को भोगता है।
इति देवसुगइ सम्मत्ता।
इति देवसुगतिः समाप्ता। इस प्रकार से देवों की सुगति का वर्णन समाप्त हुआ।
भुंजित्ता चिरकालं दिव्वं हियइच्छिअं सुहं सग्गे। माणुसलोयम्मि पुणो उप्पज्जए उत्तमे वंसे ॥1791 भुक्त्वा चिरकालं दिव्यं हृदयेप्सितं सुखं स्वर्गे। मानुषलोके पुनः उत्पद्यते उत्तमे वंशे ||17911
स्वर्ग में चिरकाल तक मनोवाञ्छित दिव्य सुख का भोग करके जीव पुनः मनुष्यलोक में उत्तम कुल में जन्म लेता है।
भुंजित्ता मणुलोए सव्वे हियइच्छियं अविग्घेण । होऊणभोयविरओजिणदिक्खं गिण्हएपरमं।।180।
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