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- धर्मरसायन
और क्योंकि उन्होंने कर्म (रज) रूपी शत्रुओं का विनाश कर दिया है अतः वे 'अर्हन्त' कहे जाते हैं ।
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जियकोहो जियमाणो जियमायालोहमोह जियमयओ । जियमच्छरो य जह्मा तम्हा णामं जिणो उत्तो ॥ 135॥
जितक्रोधो जितमानो जितमायालोभमोहः जितमदः । जितमत्सरश्च यस्मात्तस्मान्नाम जिन उक्तः ॥ 135||
क्योंकि उन्होंने क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह, मद तथा मत्सर को जीत लिया है, इसलिए उनका नाम 'जिन' कहा गया है।
जम्मजरमरणतिदयं जम्हा बहुं जिणेण णिस्सेसं । तम्हा तिउरविणासो होइ जिणे णत्थि संदेहो ॥ 136॥ जन्मजरामरणत्रितयं यस्माद्दग्धं जिनेन निःशेषम् । तस्मात्त्रिपुरविनाशे भवति जिने नास्ति सन्देहः || 136ll
क्योंकि जिनेन्द्र भगवान् ने जन्म, जरा तथा मरण - इन तीनों को पूरी तरह दग्ध ( नष्ट) कर दिया है, इसलिए उनके ' त्रिपुरविनाशक' होने में कोई सन्देह नहीं है ।
अरहंतपरमदेवं जो वंदइ परमभत्तिसंजुत्तो । तेलोयवंदणीओ अइरेण य सो णरो होइ ॥ 137|| अर्हत्परमदेवं यो वन्दते परमभक्तिसंयुक्तः । त्रिलोकवन्दनीयोऽचिरेण च स नरो भवति ॥ 137||
मनुष्य परम भक्तिभाव से युक्त होकर उन परम देव अर्हन्त परमात्मा की वन्दना करता है, वह शीघ्र ही तीनों लोकों के लिये वन्दनीय हो जाता है।
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