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________________ प्रवृत्ति यही प्रमाणित करती है कि यह कृति अर्धमागधी-प्रभावित महाराष्ट्री प्राकृत में ही रचित है। इसमें प्राय: इच्छइ, खाइ, जाइ पावइ, होइ, सेवइ आदि रूप ही मिलते हैं। कहीं-कहीं महाराष्ट्री प्राकृत की 'य' श्रुति भी देखी जाती है जैसे गाथा 186 में महासीयं (महाशीत) और सीयं (शीत) रूप। इसी प्रकार प्रथम गाथा में थुय, लोयालोयं, पयासेइ आदि शब्द भी 'य' श्रुति के पोषक ही हैं। ग्रन्थकर्ता: जहाँ तक प्रस्तुत कृति के कर्ता 'मुन पद्मनन्दि' का प्रश्न है दिगम्बर परम्परा में पद्मनन्दि नामक अनेक आचार्य हुए हैं। सर्वप्रथम तो आचार्य कुन्दकुन्द का मूल नाम भी पद्मनन्दि कहा जाता है। इनका काल ईसा की दूसरी शती से पाँचवी शती के मध्य माना जाता है, किन्तु प्रस्तुत कृति की विषयवस्तु, भाषा-शैली आदि कुन्दकुन्द से भिन्न होने के कारण यह उनकी कृति नहीं हो सकती। इसके अतिरिक्त त्रिकाल-योगी के शिष्य पद्मनन्दिका उल्लेख मिलता है। इनका काल सन् 930 से 1023 ई. माना जाता है। इसी प्रकार ई. सन् 994 के भी एक पद्मनन्दि का उल्लेख मिलता है, किन्तु इन दोनों पद्मनन्दि में कौनपद्मनन्दि इसके कर्ता हैं, यह कहना कठिन है। इनके अतिरिक्त ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तराध में वीरनन्दि के शिष्य पद्मनन्दि का उल्लेख मिलता है। सम्भवत: इन तीनों पद्मनन्दि में से कोई पद्मनन्दि ही इस कृति के कर्ता हो सकते हैं। क्योंकि इस कृति में परीक्षा मुख आदि की जो शैली है वही शैली धर्मपरीक्षा, देवपरीक्षा आदि के रूप में इस ग्रन्थ में भी है । शैलीगत समानता के आधार पर यह कृति ईसा की दसवीं से बारहवीं शती के मध्य की मानी जा सकती है। ग्रन्थ-प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने मात्र अपना नाम उल्लेखित किया है तथा अपने को यम-नियम का पालक मुनि बताया है। इसके अतिरिक्त उनके सम्बन्ध में हमें भी अधिक ज्ञात नहीं है। - डॉ.सागरमल जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002751
Book TitleDharmrasayana
Original Sutra AuthorPadmanandi
AuthorVinod Sharma
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size3 MB
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