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________________ धर्मरसायन - -26 पारसियभिल्लबब्बरचंडालकुलेसु पावयम्मेसु । उपज्जिऊण जीवो भुंजइ णिरओवमं दुक्खं ।।81॥ पारसीकभिल्लबर्बरचण्डालकुलेषु पापकर्मसु । उत्पद्य जीवो भुक्ते नरकोपमं दुःखम् ।।81|| मनुष्यभव में भी जीव पापकर्म करने वाले पारसी, भील, बर्बर, चण्डाल आदिकुलों में जन्म लेकर नरक के समान ही दुःखों को भोगता है। जइ पावइ उच्चत्तं चिरकालं पाविऊण णीयत्तं । उछिवि गम्भयहुदियं पावेइ अणेय दुक्खाई 1821 यदि प्राप्नोति उच्चत्वं चिरकालं प्राप्य नीचत्वं । तत्रापि गर्भभवानि प्राप्नोति अनेकदुःखानि ।।82|| यदि वह चिरकाल तक निम्नकुलों में जन्म लेकर अन्त में उच्चता (उच्चकुल) को प्राप्त करता है तो वहाँ भी उसे गर्भ में होने वाले अनेक दुःख तो प्राप्त होते ही हैं। जम्मंधमूयबहिरो उप्पजइ सो फलेण पावस्स। उप्पण्णदिवसपहुई पीडिज्जइ घोरवाहीहिं ॥8॥ जन्मान्धमूकवधिर उत्पद्यते स फलेन पापस्य । उत्पन्नदिवसप्रभृतित:पीड्यते घोरव्याधिभिः ।।83|| वह (पूर्वकृत) पाप के फलस्वरूपजन्म से ही अन्धा, गूंगा तथा बहरा उत्पन्न होता है तथा जन्मदिवस से लेकर घोर व्याधियों से पीड़ित रहता है। णवजोवणं पि पत्तो इच्छियसुक्खं ण पावर किंपि । गच्छद जोवणकालो सव्वो विणिरच्छओ तस्स 184|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002751
Book TitleDharmrasayana
Original Sutra AuthorPadmanandi
AuthorVinod Sharma
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size3 MB
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