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________________ धर्मरसायन -24 व(वा) हिज्जइ गुरुभारंणेच्छंतो पिहिऊण लोएहिं। पुव्वकयपावयम्मो छोडिजंतीए पुढीए 1751 वाह्यते गुरुभारं नेच्छन् ताडयित्वा लोकैः। पूर्वकृतपापकर्मा छिन्द्यन्त्या पृष्ठया ||75|| पूर्व में पापकर्म करनेवाला जीव (तिर्यक्गति में) नचाहता हुआ भी, लोगों के द्वारा पीटा जाता हुआ छिली हुई (घायल) पीठ पर अत्यधिक भार ढोता है। ताडणतासणदुक्खं बंधण तह णासविंधणं दमणं । कणछेदणदुक्खं लंछण जिल्लंछणं चेय 17611 ताडनत्रासनदुःखं बन्धनंतथा नासावेधनं दमनम्। कर्णच्छेदनदुःखं लाञ्छनं निलाञ्छनं चैव ||76|| वह पापी तिर्यक्गति में पीटा जाना, डराया जाना, बन्धन, नासिका में छिद्र किया जाना, दमन, कान में छिद्र किया जाना, दागकर चिह्न बनाया जाना तथा उस चिह्न को मिटाया जाना आदिदुःखों को सहता है। सीउण्हं जलवरिसं चउमहिमारुवं छुहा तण्हा । णाणाविहवाहीओ सहइ तहा दंसमसया य 177।। शीतोष्णे जलवर्षां चरमहिमपातं क्षुधां तृष्णां। नानाविधव्याधीश्च सहतेतथा दंशमशकांश्च ||77|| वह तिर्यक्गति में सर्दी-गर्मी, जलवर्षा, अत्यधिक हिमपात, भूख, प्यास, विविध प्रकार के रोगों, डाँस तथा मच्छरों (से उत्पन्न कष्ट) को सहता है। एइंदिएसु पंचसु अणेयजोणीसु वीरियविहूणो। भुजंतो पावफलं चिरकालं हिंडए जीवो 17811 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002751
Book TitleDharmrasayana
Original Sutra AuthorPadmanandi
AuthorVinod Sharma
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size3 MB
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