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________________ 23 उत्पन्नसमयप्रभृत्यामरणान्तं सहन्ते दुःखानि । अक्षिनिमीलनमात्रं सौख्यं न लभन्ते नारकाः ||72|| नरकवासी उत्पत्तिकाल से लेकर मृत्यु - पर्यन्त दुःखों को सहते हैं तथा उन्हें पलक झपकने भर ( क्षणमात्र) के लिये भी सुख प्राप्त नहीं होता । धर्मरसायन एवं णरयगईए बहुप्पयाराइं होंति दुक्खाई। बहुकाण विताइं ण य सक्किजंति वण्णेडं ॥73| एवं नरकगतौ बहुप्रकाराणि भवन्ति दुःखानि । बहुकालेनापि तानि न च शक्नुवन्ति वर्णयितुम् ॥73|l इस प्रकार नरकगति में बहुत प्रकार के दुःख होते हैं । दीर्घकाल में (लम्बे समय तक वर्णन करते रहने पर) भी उनका वर्णन नहीं किया जा सकता। इदी णरयगइ सम्मत्ता । इति नरकगतिः समाप्ता । इस प्रकार नरकगति का वर्णन समाप्त हुआ । उव्वरिऊण य जीवो णरयगईदो फलेण पावस्स । पुणरवि तिरियगईए पावेइ अणेयदुक्खाई ॥17411 उद्वर्त्य च जीवो नरकगतितः फलेन पापस्य । पुनरपि तिर्यग्गत्यां प्राप्नोति अनेकदुःखानि ||74ll Jain Education International जीव पाप के फलस्वरूप नरक गति से उबरकर तिर्यक्गति (पशु-पक्षीयोनि) में पुनः अनेक दुःख प्राप्त करता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002751
Book TitleDharmrasayana
Original Sutra AuthorPadmanandi
AuthorVinod Sharma
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Religion
File Size3 MB
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