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महावीर-बाणी
(१०५)
चरे पयाइ परिसंकमाणो,
जं किंचि पास इह मण्णमायो । लाभन्तरे
जीवियं बूहइत्ता, पच्छा परिन्नाय मलावधंसी ॥७॥
[उत्तरा० अ० ४ गा: ७]
(१०६) छन्दनिरोहेण उवेइ मोक्खं,
आसे जहा सिक्खिय-वम्मधारी । पुब्बाई बासाई चरेऽप्पमत्ते, तम्हा मुणी . खिप्पमुवेइ मोक्खं ॥८॥
[ उत्तरा० भ० ४ गा० ८ ]
(१०७) स पुव्यमेवं न लभेज्ज पच्छा,
एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीयई सिढिले . आउयम्मि, कालोवणीए सरीरस्स भए ।।६।।
[उत्तरा० अ० ४ गा. ]
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