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मोक्खमग्ग-सुत्तं
(२८२)
कह चरे ? कह चिट्ठ ? कहमासे ? कहं सए ? कह भुजन्तो भासन्तो पावं कम्मं न बन्धइ ? ॥१॥
(२८३)
जयं चरे जयं चिट्ठ जयमासे जयं सए । जयं भुजन्तो भासन्तो पावं कम्मं न बन्धइ ॥२॥
(२८४)
सबभूयप्पभूयस्स सम्मं भूयाई पासो । पिहियासवस्स दन्तस्स पावं कम्मं न बन्धइ ॥३॥
(२८५)
पढमं नाणं तो दया एवं चिट्ठइ सव्वसंजए । अन्नाणी किं काही किंवा नाहिद छेय-पवागं ? ॥४॥
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