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________________ 51 -------------- पुत्र-जन्म का समाचार सुनकर सेठ पुत्र-दर्शन के पहिले जिनदेव के पुण्य-कारक दर्शन के लिए गया था, अतएव उसने स्वतः स्वभाव से सुन्दर उस बालक का नाम 'सुदर्शन' रक्खा ॥१५॥ द्युतिदीप्तिमताङ्गजन्मना शुशुभाते जननी धनी च ना। शशिना शुचिशर्वरीव सा दिनवच्छीरविणा महायशाः ॥१६॥ कान्ति और दीप्ति से युक्त उस पुत्र के द्वारा महान् यश वाले माता और पिता इस प्रकार शोभा को प्राप्त हुए, जिस प्रकार कि चन्द्र से युक्त चांदनी रात और प्रकाशमान् सूर्य से युक्त दिन शोभा को प्राप्त होता है ॥१६॥ मृदुकु ङ्मललग्नभृङ्ग वत्स पयःपानमयेऽन्वयेऽभवत् । करपल्लवलालिते सुधा-लतिकाया अवनावहो बुधाः ॥१७॥ हे बुधजनो, माता के कर-पल्लव में अवस्थित वह बालक स्तनों से दुग्ध पान करते समय ऐसा प्रतीत होता था, मानो उत्तम पल्लव (पत्र) वाली अमृतलता के कोरकों पर लगा हुआ भौंरा ही हो ॥१७॥ मुहरूदिलनापदेशतस्त्वतिपातिस्तनजन्मनोऽन्वतः अभितोऽपि भवस्तलं यशःपयसाऽलङ्कृतवान्निजेन सः ॥१८॥ मात्रा से अधिक पिये गये दूध को वह बालक भूमि पर इधर-उधर उगलता हुआ ऐसा प्रतीत होता था, मानो अपने यश:स्वरुप दूध के द्वारा वह भूतल को सर्व ओर से अंलकृत कर रहा है ॥१८॥ निभृतं स शिवश्रियाऽभितः सुकपोले समुपेत्य चुम्बितः । शुशुभे छविरस्य साऽन्विताऽरुणमाणिक्य-सुकुण्डलोदिता ॥१९॥ यथासमय उस बालक के दोनों कानों में लाल माणिक से जड़े हुए कुण्डल पहिनाये गये। उनकी लाल-लाल कान्ति उसके स्वच्छ कपोलों पर पड़ती थी। वह ऐसी जान पड़ती थी, मानो प्रेमाभिभूत होकर शिव-लक्ष्मी ने एकान्त में आकर उसके दोनों कपोलों पर चुम्बन ही ले लिया है। अतः उसके ओष्ठों की लालिमा ही उस बालक के कपोलों पर अंकित हो गई है ॥१९॥ गुरुमाप्य स वै क्षमाधरं सुदिशो मातुरथोदयनरम् ।। भुवि पूज्यतया रविर्यया नृद्दगम्भोजमुदेऽव जत्तथा ॥२०॥ जैसे सूर्य पूर्व दिशारुपी माता की गोद से उठकर उदयाचलरूप पिता के पास जाता है, तो सरोवरों के कमल विकसित हो जाते हैं और वह संसार में पूजा जाता है, उसी प्रकार वह बालक भी जब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002749
Book TitleSudarshanodaya Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuramal Shastri, Hiralal Shastri
PublisherDigambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj
Publication Year1994
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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