________________
15 (१२) मनोरमा के शरीर-सौन्दर्य का वर्णन करते हुए प्रसंग वश नयनन्दि ने विभिन्न देशों की स्त्रियों
के स्वभाव-गत वा शरीर-गत विशेषताओं का भी अपूर्ण वर्णन किया है। (१३) नयनन्दि और सकल कीर्ति ने सुदर्शन के विवाह का मुहूर्त शोधने वाले श्रीधर ज्योतिषी के नाम
का भी उल्लेख किया है और बताया है कि सुदर्शन मनोरमा का विवाह वैशाख सुदी पंचमी
को हुआ। (१४) नयनन्दि ने सुदर्शन के गार्हस्थिक जीवन का भी बहुत सुन्दर वर्णन किया है। (१५) ऋषभदास सेठ के दीक्षित होते समय ही सुदर्शन ने एक पत्नी व्रत के साथ श्रावक के व्रत
ग्रहण किये, इसका सभी ने समान रुप से वर्णन किया है। कपिला ब्राह्मणी द्वारा छल पूर्वक
बुलाने आदि की घटनाएं भी सभी ने समान रुप से वर्णन की हैं। (१६) नयनन्दि लिखते हैं कि जब अन्तिम बार सुदर्शन प्रोषधोपवास के दिन स्मशान को जाने लगे
तो उन्हें अनेक अपशकुन हुए। इन अपशकुनों का भी उन्होंने बड़ा अनुभव-पूर्ण वर्णन किया है। इसी स्थल पर उन्होंने स्मशान की भयानकता का जो वर्णन किया है, उसे पढ़ते हुए एक बार
हृदय कांपने लगता है। (१७) पंडिता दासी सुदर्शन को ध्यानस्थ देखकर उनसे कहती है कि यदि धर्म में जीव-दया को धर्म
बतलाया है,तो मेरे साथ चलकर मरती राजरानी की रक्षा कर । (१८) रानी की प्रार्थना पर भी जब सुदर्शन ध्यानस्थ मौन रहते हैं, तब दोनों की चित्त-वृत्तियों का
बड़ा ही मार्मिक वर्णन नयनन्दि ने किया है। सुदर्शन रानी के राग भरे वचनों को सुनकर वा काय की कुचेष्टा को देखकर मनमें विचारते हैं कि सभी सांसारिक सुख अनन्त बार मिले और आगे फिर भी उनका मिलना सुलभ है। किन्तु इस महान चारित्र रूप धन का पाना अति दुर्लभ
है, मैं इन तुच्छ विषयों के लिए कैसे इस अमूल्य धन का परित्याग करूं । (१९) मनोरमा ने जब सुना कि मेरे पति को राजा ने मारने का आदेश दे दिया है, उस समय उसके
करुण विलाप का बड़ा ही मर्म-भेदी वर्णन नयनन्दि ने किया है । (२०) सुदर्शन के ऊपर चाण्डाल द्वारा किया गया असिप्रहार जब हार रुप से परिणत हो गया, तब
यह बात सुनकर राजा ने क्रोधित हो अनेकों सुभटों को सुदर्शन के मारने के लिए भेजा। धर्म के रक्षक एक देव ने उन सबको कील दिया। जब राजा को यह पता चला तो वह क्रुद्ध हो बड़ी सेना लेकर स्वयं सुदर्शन को मारने के लिए चला। तब देव ने भी बहुत बड़ी सेना अपनी विक्रिया से बनाई। दोनों सेनाओं में और देव तथा राजा में घमासान युद्ध हुआ। इसका बहुत विस्तृत एवं लोम-हर्षक वर्णन नयनन्दि ने किया है। सकलकीर्ति ने भी उक्त सभी स्थलों पर नयनन्दिका अनुसरण करते हुए वर्णन किया है। किन्तु यतः सुदर्शनोदय एक काव्य रुप से रचित
ग्रन्थ है। अतः इसमें घटनाओं का विस्तृत वर्णन नहीं दिया गया है । (२१) सुदर्शन के मुनि बन जाने पर व्यन्तरी के द्वारा जो घोर उपसर्ग सात दिन तक किया गया उसका
रोम-हर्षक वर्णन करते हए नयनन्दि लिखते हैं कि उसके घोर उपसर्ग से एक बार तीनों लोक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org