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परिशिष्ट
सुदर्शनोदय के पंचम सर्ग में ग्रन्थकार ने प्रभाती, पूजन, स्तवन आदि के रूप में भगवद्-भक्ति का बहुत ही भाव - पूर्ण वर्णन अनेक प्रकार के राग रागिणी वाले छन्दों में किया है, जिसका असली रसास्वादन तो संस्कृतज्ञ पाठक ही करेंगे। परन्तु जो संस्कृतज्ञ नहीं हैं, उन लोगों को लक्ष्य में रखकर इस प्रकरण का हिन्दी पद्यानुवाद भी भक्ति- वश मैंने किया, जो यहां पर दिया जा रहा है। ( १ )
पंचम सर्ग के प्रारम्भ में पृष्ठ ६९ पर
अहो प्रभात हुआ हे भाई,
आई हुई 'संस्कृत
भव-भय- हर
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प्रभाती' का हिन्दी पद्यानुवाद जिन भास्कर
अब, इस शुभ भारत- भूतल से
पापप्राया भगी निशा
इष्टि न
आते, आती, न
तारे भी अब कायरता त्यों इष्टि नभचर का संचार हुआ विप्र समादर करें नीच अब भी भूकी शान्ति हेतु अब, लगन
मैले,
आमेरिक मन
-
'भूरा'
(२)
पृष्ठ ६९ पर आये 'आगच्छता' इत्यादि संस्कृत गीत का हिन्दी पद्यानुवादआओ भाई चलो चलें अब, श्रीजिनवर की पूजन को आत्म-स्फूर्ति कराने वाली, देखें द्दगसे जिन छवि को
सब
द्रव्यनिको। जीवनको ॥टेक, २॥ गन्धोदक को
1
तुमको ॥टेक, ३ ॥
-
सित द्युति चन्द्र पलायन ज्यों श्वेताङ्गी जाने से अब, ज्यों नभ-यान चले का, पूजन कर हरकी जल से
नभ
दिखें सुमन अलिसे लगा ले जिन-पद से
जल चन्दन तन्दुल पुष्पादिक, करमें श्रीजिनवर की कर पूजा हम, सफल करें निज कलि- - मल-धावन, अतिशय पावन, लेकर शिरं पर धारण करें, हरें सब पाप, कहें क्या फिर यह मस्तक जिन-पद में उत्तम-पद- सम्प्राति हेतु यह, थोड़ा बहुत बने जो 'भूरा' सद्-गुणमयी
कुछ
बना
लो,
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से,
॥ अहो. ॥
से,
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जैसे
॥ अहो.।।
रखकर, पावन करें अरे, इसको I
निश्चय ही कहते तुमको ॥टेक, ४॥ भी, सद गुण-गान करो, मनको। देव - भजन कर जीवनको ॥टेक, ५॥
1
॥टेक, १ ॥
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