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50 जिनवाणी
|| 15,17 नवम्बर 2006 अभी भौतिकवादी बना हुआ है। इसलिए वह स्वयं की ओर से आँख मूंद कर दूसरों पर दोषारोपण करता है।
एक संन्यासी जा रहा था। रास्ते में देखा- एक स्त्री पेड़ के नीचे लेटी हुई है। पास में ही एक बोतल रखी हुई है। एक पुरुष उस स्त्री के समीप बैठा उसके सिर पर हाथ फेर रहा है। संन्यासी की भृकुटि तन गई। वह कठोर वाणी में बोला- “संध्या का समय है। धर्मध्यान करने के समय तुम ऐसा निकृष्ट आचरण क्यों कर रहे हो?" अनेक दुर्वचन कहता हुआ वह संन्यासी आगे बढ गया। सामने कलकल नदी बह रही थी। उसी समय नदी में बहती हुई एक नौका तेज हवा में जोर से डगमगाई। कई आदमी लड़खड़ा कर नदी में गिर गए। पेड़ के नीचे बैठा आदमी यह दृश्य देखकर क्षण भर का विलंब किये बिना दौड़ता हुआ आया और पानी में कूद गया। स्वयं की परवाह न करते हुए उसने तैर कर एक-एक कर सब लोगों को पानी से निकाला और फिर चुपचाप पेड़ के नीचे उस स्त्री के पास चला गया। संन्यासी अपनी आँखों से यह सारा दृश्य देख अवाक रह गया। वह पुनः पेड़ के पास गया और बोला- “भाई, तुमने तो बड़ा उपकार का कार्य किया है, साधुवाद है तुम्हें । वह व्यक्ति बोला- “मुझे आपका साधुवाद नहीं चाहिये। आप संन्यासी जैसे दीखते जरूर हैं, किन्तु मैं आपको संन्यासी नहीं मानता। बिना कुछ ध्यान दिये आपने मुझ पर घृणित आरोप लगा दिया और आप नहीं जानते हैं यह मेरी माँ है, जो बीमार है और यह शराब की नहीं दवा की बोतल है।"
जहाँ व्यक्ति दूसरे को देखता है वहाँ आरोप की भाषा चलती है। प्रत्येक घटना में अपने आपको देखना शुरू कर दें तो जीवन में एक अपूर्व परिवर्तन की अनुभूति होने लगेगी। प्रतिक्रमण का पहला चरण शुरू हो जायेगा, जीवन की बहुत सारी समस्याएँ सुलझनी शुरू हो जायेंगी। आत्म-निरीक्षण का प्रारूप
भगवान् महावीर ने आत्मनिरीक्षण की सुन्दर विधि प्रतिपादित की। प्रत्येक व्यक्ति यह अनुशीलन करेकिं मे कडं- आज मैंने क्या किया? किं च मे किच्चसेसं - मेरे लिए क्या कार्य करना शेष है? किं सक्किणिज्जं न समायरामि- वह कौन सा कार्य है जिसे मैं कर सकता हूँ, पर प्रमादवश नहीं कर रहा हूँ। किं मे परो पासइ किं व अप्पा- क्या मेरे प्रमाद को कोई दूसरा देखता है अथवा मैं अपनी भूल को स्वयं देख लेता हूँ। किं वाहं खलियं न विवज्जयामि - वह कौनसी स्खलना है, जिसे मैं छोड़ नहीं रहा हूँ। यह आत्मनिरीक्षण का एक प्रारूप है। जो व्यक्ति इसके अनुसार आत्मनिरीक्षण करता रहता है वह सचमुच प्रतिक्रमण की दहलीज पर पाँव रख देता है।
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