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| जिनवाणी
|15,17 नवम्बर 200 पिया जाए। बड़े शहरों में तो यह अनिवार्य-सा हो गया है। डाक्टर यह भी सुझाव देते हैं कि उबाले बिना फल भी न, खाया जाए। सचित्त और अचित्त से भी मुख्य प्रश्न हो गया है स्वास्थ्य और बीमारी का। इसका कारण स्पष्ट है। कुछ न कुछ ऊपर से आ रहा है, ज़हर के रूप में बरस रहा है और नीचे से भी आ रहा है। उर्वरकों और रसायनों के रूप में धरती पर जो घोला जा रहा है, उसके परिणाम क्या लाभकारी होंगे? प्रत्येक आदमी के पेट में रोज अन्न-पानी के साथ निश्चित मात्रा में जहर प्रवेश कर रहा है। बचाव का कोई रास्ता नहीं है। ऐसा बचा ही क्या है, जिसके साथ में ज़हर न जाए? एक प्रकार से पूरी दुनिया ही संक्रामक हो गई है। मानसिक स्तर पर
मानसिक स्तर पर देखें। मन पर कितना विकिरण हो रहा है? राग-द्वेष प्रायः हर व्यक्ति में हैं। अणुविस्फोटों ने अणुधूलि का जितना विकिरण किया है और जितनी बीमारी की संभावनाएँ पैदा की हैं क्या मानसिक स्तर पर उससे कम विकिरण हो रहा है? पूरा वायुमंडल ही राग-द्वेष के परमाणुओं से भरा है। इस अवस्था में उस पर कोई ढक्कन न डालें तो वह कितना भारी और बोझिल बन जायेगा। मानसिक समस्याएँ इसीलिए बढ़ रही हैं। एक भाई ने अपनी समस्या प्रस्तुत की- “मन इतना चंचल और बेचैन रहता है कि उस पर अब मेरा कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया। अनेक दुष्कल्पनाएँ निरंतर आती रहती हैं, इसका कारण क्या है?" मैंने कहा- “कारण तो बहुत साफ है। जब तक मन पर कोई ढक्कन नहीं डालोगे, तब तक ऐसा चलता रहेगा।" महत्त्व व्रतका
__ भारतीय चिंतन में व्रत का बहुत महत्त्व रहा है। इसका बहुत विकास भी हुआ है। इस शब्द का मूल अर्थ है आच्छादन या आवरण । संस्कृत की धातु है 'वृतु वरणे' अर्थात् आच्छादन कर देना। किसी चीज को ढाक देने का नाम है व्रत । छत बना ली, व्रत हो गया। मन पर एक छप्पर डाल दिया, व्रत हो गया। कुछ नहीं डाला, मन खुला रह गया तो हर चीज घुस जायेगी। खुले घर में चोर-उचक्के घुस सकते हैं और जंगली जानवर भी घुस सकते हैं।
एक पंडित यात्रा पर निकला। जंगल में उसे भूख लगी। एक जगह को साफ कर उसे लीपा और चूल्हा बनाया। फिर ईंधन इकट्ठा करने कुछ दूर निकल गया । वापस आया तो देखा, वहाँ एक गधा बैठा है। चौका खुला था, गधे को वहाँ बैठने से कौन रोक सकता था? पंडित हैरान रह गया। वह बोला- “गर्दभराज! कोई दूसरा इस तरह आकर बैठा होता तो उससे कहता- देखते नहीं, गधे हो क्या? जब आप स्वयं यहाँ आकर विराज गए हैं तो क्या कहूँ, आपको क्या उपमा दूं।" संस्कार व्रत का
घर खुला रहेगा तो उसमें गधा भी घुसेगा और कुत्ता भी। यह खुलावट एक बड़ी समस्या है। इसीलिए जीवन में व्रत का विधान किया गया है। पुराने संत लोगों को इस भाषा में समझाया करते थे- “भाई! अधिक नहीं हो तो कम से कम एक व्रत ले लो कि कौए को नहीं मारूँगा, किसी चिड़िया को नहीं मारूँगा। कौए को मारने का कब कितना काम पड़ता है? लेकिन यह इसलिए कहा जाता था कि इससे एक संस्कार शुरू होता था। जीवन में कोई न
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