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________________ ||15,17 नवम्बर 2006|| जिनवाणी ५२. अप्पमज्जिय दुप्पमज्जिय सेज्जासंथारए- शय्या संथारा पूँजा न हो या अच्छी तरह से न पूँजा हो। ५३. अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय उच्चारपासवण भूमि- मल-मूत्र आदि त्यागने-परठने की भूमि न देखी हो या अच्छी तरह न देखी हो। ५४. अप्पमज्जिय दुप्पमज्जिय उच्चारपासवण भूमि- मल-मूत्र आदि त्यागने-परठने की भूमि न पूँजी हो अथवा अच्छी तरह से न पूँजी हो। ५५. पोसहस्स सम्म अणणुपालणया- पौषध का सम्यक् प्रकार से पालन न किया हो। ५६. सचित्त निक्खेवणया- साधु को नहीं देने की बुद्धि से अचित्त वस्तु को सचित्त जल आदि पर रखना। ५७. सचित्त पिहणया- अचित्त (निर्दोष-सूझती) वस्तु को सचित्त वस्तु से ढंक देना। ५८. कालाइक्कमे- भिक्षा का समय टाल कर भावना की हो। ५९. परववएसे- आप सूझता होते हुए भी दूसरों से दान दिलाया हो। ६०. मच्छरियाए- मत्सर (ईर्ष्या) भाव से दान दिया हो। १५ कर्मादान १. इंगालकम्मे- ईंट, कोयला, चूना आदि बनाना। २. वणकम्मे- वृक्षों को काटना। ३. साडीकम्मे- गाड़ियाँ आदि बनाकर बेचना। ४. भाडीकम्मे- गाड़ियाँ आदि किराये पर देना। फोडीकम्मे- पत्थर आदि फोड़ने का व्यापार करना। दंतवाणिज्जे- दाँत आदि का व्यापार करना ७. लक्खवाणिज्जे- लाख आदि का व्यापार करना। ८. रसवाणिज्जे- शराब आदि रसों का व्यापार करना। ९. केसवाणिज्जे- दास-दासी, पशु आदि का व्यापार करना। १०. विसवाणिज्जे- विष, सोमल, संखिया आदि तथा शस्त्रादि का व्यापार करना। ११. जंतपीलणकम्मे- तिल आदि पीलने के यंत्र चलाना। १२. निल्लंछणकम्मे- नपुंसक बनाने का काम करना। १३. दवग्गिदावणया- जंगल में आग लगाना। १४. सरदहतलायसोसणया- सरोवर, तालाब आदि सुखाना। १५. असईजणपोसणया- वेश्या आदि का पोषण कर दुष्कर्म से द्रव्य कमाना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
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