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||15,17 नवम्बर 2006||
| जिनवाणी उत्पन्न पुष्प आदि सुगन्धित पदार्थ जिनकी गंध दूर तक फैलती है, उन पर आसक्ति नहीं होनी चाहिए। उनका चिन्तन भी नहीं करना चाहिए, घ्राणेन्द्रिय से अप्रिय लगने वाली दुर्गन्ध के प्रति द्वेष नहीं करना चाहिए। रसनेन्द्रिय संयम : चौथी भावना- साधु रसनेन्द्रिय द्वारा मनोज्ञ एवं उत्तम रसों का आस्वादन करके
आसक्त नहीं बने। वे द्रव्य जिनका वर्ण, गंध, रस, स्पर्श उत्तम है। उत्तम वस्तुओं के योग से संस्कारित किये गए हैं, इस प्रकार के सभी उत्तम एवं मनोज्ञ रसों में साधु आसक्त नहीं होते। अमनोज्ञ, अरुचिकर, अनिच्छनीय, घृणित रसों पर साधु द्वेष नहीं करे। रसना पर नियंत्रण कर धर्म का पालन करे। स्पर्शनेन्द्रिय संयम : पाँचवीं भावना- साधु स्पर्शनेन्द्रिय से मनोज्ञ और सुखदायक स्पर्शो का स्पर्श कर उनमें आसक्त नहीं बने। गर्मी में शीतल वायु का सेवन करना, कोमल स्पर्श वाले वस्त्र, शीतकाल में उष्ण वस्त्र, उष्ण ताप आदि, इसी प्रकार के अन्य सुखदस्पर्शो का अनुभव नहीं करना चाहिए। अमनोज्ञ स्पर्श, जैसे रस्सी आदि से बाँधना, हाथ में हथकड़ी, मच्छर के डंक आदि इस प्रकार के अन्य अनिच्छनीय एवं दुःखदायक स्पर्श होने पर साधु को उन पर द्वेष नहीं करना चाहिए।
इस प्रकार स्पर्शनेन्द्रिय संबंधी भावना से भावित आत्मा वाला साधु निर्मल होता है। मन-वचनकाया से गुप्त एवं संवृत्त रहकर, जितेन्द्रिय होकर धर्म का आचरण करता है।
(विस्तृत विवेचन प्रश्नव्याकरण सूत्र संवर द्वार ५ में) प्रश्न निम्न साधना परक वाक्यों की आवश्यक सूत्र के संदर्भ में व्याख्या कीजिए -
१. की हुई भूल को नहीं दोहराने से बड़ा कोई प्रायश्चित्त नहीं। २. निर्दोषता(संबंधित दोष की अपेक्षा) के क्षण में ही दोष ध्यान में आता है। ३. जो इन्द्रिय और मन के वश में नहीं होता है उसके ही भाव आवश्यक होता है। ४. आत्मसाक्षी से धर्म होता है। आंतरिक इच्छा से वन्दना, प्रतिक्रमण आदि होते हैं। ५. अपने सदाचार के प्रति स्वाभिमान पूर्ण, गम्भीर वाणी से साधकभाव की जागृति होती है। ६. प्रभो! मैं तुम्हारा अतीतकाल हूँ, तुम मेरे भविष्यकाल हो, वर्तमान में मैं तुम्हारा अनुभव करूँ,
यही भक्ति है। ७. खामेमि सव्वे जीवा- क्रोध विजय, सव्वे जीवा खमंतु मे- मान विजय, मित्ती मे सव्वभूएसु
माया विजय, वेरं मझं न केणइ- लोभ विजय का उपाय है। ८. रसोइये को अपने समान भोजन नहीं करा सकने वालों को, रसोइये से भोजन नहीं बनवाना
चाहिए। लालसा भरी दृष्टि के कारण, उनका भोजन दूषित हो जाता है।
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