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| जिनवाणी
||15,17 नवम्बर 2006 उत्तर तीर्थंकर भगवन्तों ने अपने श्रीमुख से जो भाव फरमाए, उन्हें सुनकर गणधर भगवन्तों ने जिन
आचारांग आदि आगमों की रचना की, उस सूत्र रूप आगम को 'सूत्रागम' कहते हैं।
अर्थागम किसे कहते हैं? उत्तर तीर्थंकर परमात्मा ने अपने श्रीमुख से जो भाव प्रकट किए, उस भाव रूप आगम को 'अर्थागम'
कहते हैं। अथवा सूत्रों के जो हिन्दी आदि भाषाओं में अनुवाद किये गए हैं, उन्हें भी अर्थागम कहते
प्रश्न
उत्तर
प्रश्न तदुभयागम किसे कहते हैं? उत्तर सूत्रागम और अर्थागम ये दोनों मिलाकर तदुभयागम कहलाते हैं। प्रश्न उच्चारण की अशुद्धि से क्या-क्या हानियाँ हैं? उत्तर १. उच्चारण की अशुद्धि से कई बार अर्थ सर्वथा नष्ट हो जाता है। २. कई बार विपरीत अर्थ हो
जाता है। ३. कई बार आवश्यक अर्थ में कमी रह जाती है। ४. कई बार सत्य किन्तु अप्रासंगिक अर्थ हो जाता है, इस प्रकार अनेक हानियाँ हैं। उदाहरण- ‘संसार' शब्द में एक बिन्दु कम बोलने पर ससार (सार सहित) शब्द हो जाता है या शास्त्र में से एक मात्रा कम कर देने पर शस्त्र हो जाता है। अतः उच्चारण अत्यन्त शुद्ध करना
चाहिए। प्रश्न अकाल में स्वाध्याय और काल में अस्वाध्याय से क्या हानि है?
जैसे जो राग या रागिनी जिस काल में गाना चाहिए, उससे भिन्न काल में गाने से अहित होता है, वैसे ही अकाल में स्वाध्याय करने से अहित होता है। यथाकाल स्वाध्याय न करने से ज्ञान में हानि.तथा अव्यवस्थितता का दोष उत्पन्न होता है। अकाल में स्वाध्याय करने एवं काल में स्वाध्याय न करने में शास्त्राज्ञा का उल्लंघन होता है। अतः इन अतिचारों का वर्जन करके यथासमय व्यवस्थित रीति से
स्वाध्याय करना चाहिए। प्रश्न ज्ञान एवं ज्ञानी की सेवा क्यों करनी चाहिए? उत्तर ज्ञान एवं ज्ञानी की सेवा पाँच कारणों से करनी चाहिए- १. हमें नवीन ज्ञान की प्राप्ति होती है। २.
हमारे संदेह का निवारण होता है। ३. सत्यासत्य का निर्णय होता है। ४. अतिचारों की शुद्धि होती
है। ५. नवीन प्रेरणा से हमारे सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप शुद्ध तथा दृढ़ बनते हैं। प्रश्न जिनवचन में शंका क्यों होती है, उसे कैसे दूर किया जा सकता है? उत्तर श्री जिनवचन में कई स्थानों पर सूक्ष्म तत्त्वों का विवेचन हुआ है। कई स्थानों पर नय और निक्षेप के ।
आधार पर वर्णन हुआ है। वह हमारी स्थूल बुद्धि से समझ में नहीं आता , इस कारण शंकाएँ हो जाती हैं। अतः हमें अरिहन्त भगवान् के केवलज्ञान व वीतरागता का विचार करके तथा अपनी बुद्धि
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