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15, 17 नवम्बर 2006
हैं जो नियत स्थान पर ही पढ़े जा सकते हैं। "
“कालक्रम से अथवा रुचि के वैचित्रय से या देशभेद से जो इस आवश्यक सूत्र में पाठ भेदादि यत्रतत्र उपलब्ध हैं उस भेद को मिटाने के लिये अजमेर के मुनि सम्मेलन में यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि आवश्यक सूत्र के मूल पाठ एक होना चाहिये। जैसे श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज में आवश्यक के बहुत पाठ ढ़ गये हैं, इसी प्रकार श्वेताम्बर साधुमार्गीय शाखा में भी कतिपय गुजराती, मारवाड़ी आदि भाषा में भी पाठ देखने में आते हैं। जिससे आवश्यक एक मिश्रित भाषा में हो गया है, अतः मौलिक अर्द्धमागधी भाषा में आवश्यक सूत्र हो तो स्थानकवासी शाखा में एक प्रतिक्रमण हो सकता है।'
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“आनन्द का विषय है कि हमारे सुहृदूवर्य मरुस्थलीय आचार्यवर्य पूज्य श्री हस्तीमल जी म.सा. ने इस काम को अपने हाथ में लिया। कतिपय प्राचीन आवश्यकों की प्रतियों के आधार से इस मौलिक आवश्यक सूत्र के शुद्ध पाठों का संग्रह कर जनता पर परमोपकार किया है। इस आवश्यक सूत्र में उत्तराध्ययन सूत्र के २९ वें अध्ययन में आए हुए छः आवश्यक सूत्र पाठों के क्रम के अनुसार पाठ संग्रह है। "
- नौरतन मेहता, सह सम्पादक- जिनवाणी घोड़ों का चौक, जोधपुर (राज.)
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