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________________ 15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 277 आवश्यकसूत्र पर व्याख्यासाहित्य आचार्य श्री देवेन्द्रमुनि जी म.सा. आवश्यकसूत्र पर आवश्यकनियुक्ति, विशेषावश्यक भाष्य, हारिभद्रीयवृत्ति एवं मलधारी हेमचन्द्र द्वारा रचित टिप्पणक व शिष्यहितावृत्ति आदि प्रमुख व्याख्याएँ हैं। आचार्यप्रवर श्री देवेन्द्रमुनि जी म.सा. ने आगम समिति से प्रकाशित आवश्यक सूत्र की भूमिका में इन व्याख्याओं का परिचय दिया था। उसे यहाँ उपयोगी समझकर उद्धृत किया गया है। -सम्पादक आवश्यकसूत्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण सूत्र है कि जिस पर सबसे अधिक व्याख्याएँ लिखी गयी हैं। इसके मुख्य व्याख्याग्रन्थ हैं- नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, स्तबक (टब्बा) और हिन्दी विवेचन। आवश्यकनियुक्ति ___आगमों पर दस नियुक्तियाँ प्राप्त हैं। उन दस नियुक्तियों में प्रथम नियुक्ति का नाम आवश्यकनियुक्ति है। आवश्यकनियुक्ति में अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है। अन्य नियुक्तियों को समझने के लिये आवश्यकनियुक्ति को समझना आवश्यक है। इसमें सर्वप्रथम उपोद्घात है, जो भूमिका के रूप में है तथा उसमें ८८० गाथाएँ है। प्रथम पाँच ज्ञानों का विस्तार से निरूपण है। ज्ञान के वर्णन के पश्चात् नियुक्ति में षडावश्यक का निरूपण है। उसमें सर्वप्रथम सामायिक है। चारित्र का प्रारम्भ ही सामायिक से होता है। मुक्ति के लिये ज्ञान और चारित्र ये दोनों आवश्यक हैं। सामायिक का अधिकारी श्रुतज्ञानी होता है। वह क्षय, उपशम, क्षयोपशम कर केवलज्ञान और मोक्ष को प्राप्त करता है। सामायिकश्रुत का अधिकारी ही तीर्थंकर जैसे गौरवशाली पद को प्राप्त करता है। तीर्थंकर केवलज्ञान होने के पश्चात् जिस श्रुत का उपदेश करते हैं- वही जिनप्रवचन है। उस पर विस्तार से चिन्तन करने के पश्चात् सामायिक पर उद्देश्य, निर्देश, निर्गम आदि २६ द्वारों से विवेचन किया गया है। मिथ्यात्व का निर्गमन किस प्रकार किया जाता है, इस प्रश्न पर चिन्तन करते हुए नियुक्तिकार ने महावीर के पूर्वभवों का वर्णन, उसमें कुलकरों की चर्या, भगवान् ऋषभदेव का जीवन-परिचय आदि विस्तृत रूप से दिया है। निह्नवों का भी निरूपण है। सामायिक सूत्र के प्रारम्भ में नमस्कार महामंत्र आता है। इसलिये नमस्कार मंत्र की उत्पत्ति, निक्षेप, पद, पदार्थ, प्ररूपणा, वस्तु, आक्षेप, प्रसिद्धि, क्रम, प्रयोजन और फल- इन ग्यारह दृष्टियों से नमस्कार महामंत्र पर चिन्तन किया गया है जो साधक के लिये बहुत ही उपयोगी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
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