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________________ ||15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी का प्रतिक्रमण किया। प्रमाद का प्रतिक्रमण __ प्रमाद का प्रतिक्रमण करने के उदाहरण हैं- शैलक राजर्षि। शैलकपुरी के राजा शैलक किस प्रकार मुनि बन गए, यह वर्णन ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के शैलक अध्ययन में आता है। एक बार शैलकपुर में भगवान् अरिष्टनेमि की परम्परा के शुक मुनि का पदार्पण हुआ। राजा शैलक भी वन्दनार्थ गए। धर्मोपदेश सुनकर राजा को प्रतिबोध हुआ। मंत्रीवर्ग से सलाह की। पंथक आदि ५०० मंत्री भी संयम लेने हेतु तैयार हो गए। जब राजा इस मार्ग पर जा रहे हों तो हम क्यों पीछे रहें। राजा ने राजकुमार को राज्य में स्थापित कर पंथक आदि मंत्रीगण के साथ संयम ग्रहण कर लिया। कर्मगति की विचित्रता। शैलक राजर्षि अस्वस्थ हो गए, विचरण नहीं कर रहे थे। एक स्थान पर विराज रहे थे। इलाज चल रहा था। शुभकर्म योग से स्वास्थ्य लाभ किया, परन्तु बहुत प्रमादी बन चुके थे। साधु के आचार को भूलकर शिथिलाचारी बन गए। पंथक आदि मुनियों ने देखा कि शैलक राजर्षि विहार नहीं कर रहे और शिथिलाचारी बन रहे हैं। उन्होंने पंथक मुनि को सेवा में रखकर विहार कर दिया। पंथक मुनि देवसिय प्रतिक्रमण पूर्ण कर चौमासी प्रतिक्रमण की आज्ञार्थ शैलक राजर्षि की सेवा में आए। वन्दन कर चरण स्पर्श किया। शैलक राजर्षि अपने आराम में व्यवधान से नाराज हुए। पंथक मुनि ने सारी स्थिति स्पष्ट की और प्रतिक्रमण की आज्ञार्थ चरणस्पर्श का निवेदन किया। भविष्य में मैं आपके विश्राम में बाधक नहीं बनूँगा-क्षमायाचना की पंथक मुनि ने। शैलक राजर्षि सावधान बने। प्रमाद का परिहार कर पश्चात्तापपूर्वक विहार करने लगे। साधुचर्या का सम्यक् पालन करने लगे। इस प्रकार शैलक राजर्षि ने प्रमाद का प्रतिक्रमण किया और अप्रमादी बनकर साधु समाचारी का पुनः पालन किया। कषाय का प्रतिक्रमण कषाय का प्रतिक्रमण किया था- चंडकौशिक सर्प ने। तीर्थंकर महावीर प्रभु साधनाशील थे। शीत, ताप आदि परीषहों को सहन करते हुए एक बार भयंकर वन प्रदेश में पहुंच गए। वहाँ एक भयानक विषधर चंडकौशिक रहता था। ग्वालों ने महावीर को उधर जाने से बहुत मना किया। चण्डकौशिक ने अपनी जहरीली फुफकार से और विषभरी नजर से हजारों प्राणियों को मौत के घाट उतार दिया था। प्रभु महावीर घबराए नहीं, वे तो कर्म काटने के लिए उसी मार्ग पर बढ़ रहे थे, आखिर पहुँच गए सर्प की बाँबी के निकट। चण्डकौशिक अपनी बाँबी पर आए मनुष्य को देखकर क्रोध में जलने लगा। वह महावीर के पाँव में डंक मारने लगा, परन्तु आश्चर्य यहाँ तो लाल नहीं सफेद खून था। वह उसे मीठा लगा। महावीर ने चण्डकौशिक को जगाया और कहा- “बोध प्राप्त करो। बोध क्यों नहीं पाते हो?' मन वाला चण्डकौशिक महावीर के कथन को समझ गया। सोच लिया कि अब किसी को नहीं काटेगा। उसका क्रोध शांत बना। उसे पूर्वभव में मुनि बनने का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
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