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15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 210
कायोत्सर्ग : एक विवेचन
श्री विमल कुमार चोरडिया
कायोत्सर्ग एक महती साधना है जो कर्म-निर्जरा के साथ केवलज्ञान एवं मुक्ति की प्राप्ति सहायक है। कायोत्सर्ग के प्रयोजन, स्वरूप, कायोत्सर्ग मुद्रा, कायोत्सर्ग के दोष, कायोत्सर्ग के लाभ आदि पर पूर्व सांसद श्री चोरडिया जी ने सम्यक् प्रकाश डाला है। -सम्पादक
कायोत्सर्ग का सीधा अर्थ है, काया का उत्सर्ग अर्थात् त्याग।
अध्यात्म की अपेक्षा से देहत्याग का आशय देह के प्रति जो अनुराग है,देहाध्यास है,उसका परित्याग करना। इस देहाध्यास का त्याग करने के लक्ष्य से निम्नलिखित हेतुओं से कायोत्सर्ग किया जाता है :१. रास्ते में चलने-फिरने आदि से जो विराधना होती है उससे लगने वाले अतिचार से निवृत्त होने के लिए,
उस पापकर्म को नीरस करने के लिए (इरियावहियं सूत्र के अनुसार) तथा तस्सउत्तरी सूत्र के अनुसार२. उत्तरीकरणेणं- पाप मल लगने से आत्मा मलिन है। आत्मा की विशेष शुद्धि के लिए, उसको अधिक
निर्मल बनाने के लिए, उस पर अच्छे संस्कार डालकर उसको उत्तरोत्तर उन्नत बनाने के लिए। ३. पायच्छित्तकरणेणं- प्रायश्चित्त करने के लिए, पाप का छेद-विच्छेद करने के लिए, आत्मा को शुद्ध
बनाने के लिए। ४. विसोहिकरणेणं- विशोधिकरण के लिए, आत्मा के परिणामों की विशेष शुद्धि करने के लिए। आत्मा के
अशुभ व अशुद्ध अध्यवसायों के निवारण के लिए। ५. विसल्लीकरणेणं- विशल्यीकरण, आत्मा को माया शल्य, निदान शल्य एवं मिथ्यात्व शल्य से रहित
बनाने के लिए कायोत्सर्ग करते हैं। ६. अरिहंत प्रभु एवं श्रुत धर्म के वन्दन, पूजन , सत्कार, सम्मान के निमित्त; बोधि लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के
लिए- वड्ढमाणीए बढ़ती हुई- १. सद्धाए श्रद्धा से, २. मेहाए बुद्धि से ३. धिईए=धृति से विशेष प्रीति से, ४. धारणाए=धारणा से स्मृति से ५. अणुप्पेहाए अनुप्रेक्षा से=चिन्तन से कायोत्सर्ग करते हैं।
ये कायोत्सर्ग भावधारा की शुद्धि के लिए आवश्यक हैं। ७. इनके अतिरिक्त जो देव शासन की सेवा-शुश्रूषा करने वाले हैं, शान्ति देने वाले हैं; सम्यक्त्वी जीवों को
समाधि पहुँचाने वाले हैं उनकी आराधना के लिए, दोषों के परिहार के लिए, क्षुद्र उपद्रव के परिहार के लिए, तीर्थ-उन्नति, गुरुवन्दन आदि के लिए भी कायोत्सर्ग किए जाते हैं।
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