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________________ 156 ता || जिनवाणी ||15,17 नवम्बर 2006|| ३. फलविहि - आम, जामुन, नारियल आदि फलों को खाने की मर्यादा तथा माथे में लगाने के लिए आँवलादि की मर्यादा। ४. अब्भंगणविहि - इत्र, तेल, फुलेल आदि की मर्यादा। ५. उव्वट्टणविहि- शरीर को स्वच्छ और सतेज करने के लिए पीठी वगैरह उबटन लगाने की मर्यादा। ६. मज्जणविहि - स्नान के लिए पानी की मर्यादा। ७. वत्थविहि - वस्त्रों की जाति और संख्या की मर्यादा। ८. विलेवणविहि - शरीर पर लेपन करने के अगर, तगर, केसर, इत्र, तेल, सेंट आदि वस्तुओं की मर्यादा। ९. पुप्फविहि- फूलों की जाति तथा संख्या की मर्यादा। १०. आभरणविहि - आभूषणों की संख्या तथा जाति की मर्यादा। ११. धूवविहि - धूप (सुगन्धित द्रव्य) की जाति तथा संख्या की मर्यादा। १२. पेज्जविहि - शर्बत, चाय, काफी आदि पेय पदार्थों की मर्यादा। १३. भक्खणविहि - पकवान और मिठाई की मर्यादा। १४. ओदणविहि - चावल, खिचडी आदि की मर्यादा। १५. सूपविहि - चना, मूंग, मोठ, उड़द आदि दालों की तथा चौबीस प्रकार के धान्यों की मर्यादा करना। १६. विगयविहि - दूध, दही, घी, तेल, गुड़, शक्कर आदि की मर्यादा। १७. सागविहि - मैथी, चन्दलोई आदि भाजी तथा तोरई, ककड़ी, भिण्डी आदि अन्य सागों की मर्यादा। १८.माहुरविहि - बादाम, पिश्ता, खारक आदि मेवे की तथा आँवला आदि मुरब्बे की मर्यादा। १९. जीमणविहि - भोजन में जितने पदार्थ भोगने में आए उनकी मर्यादा करना। २०. पाणीविहि - नदी, कूप, तालाब, नल आदि के पानी की मर्यादा। २१. मुखवासविहि - पान, सुपारी, लोंग, इलायची, चूर्ण, खटाई आदि की मर्यादा करना। २२. वाहणविहि - हाथी, घोड़ा, बैल आदि से चलने वाली गाड़ी या बग्गी, मोटर, साइकिल, कार, बस आदि यन्त्र चालित वाहन, जहाज, नौका, स्टीमर आदि तिरने वाले वाहन, विमान, हवाई जहाज, गुब्बारा आदि उड़ने वाले वाहन तथा अन्य प्रकार की सवारियों की मर्यादा। २३. उवाहण (उपानह) विहि - जूता, चप्पल,खडाऊ आदि की मर्यादा। २४. सयणविहि - खाट, पलंग, कोच, टेबिल, कुर्सी, बिछौने की जितनी भी जातियाँ हैं उन सबकी मर्यादा। २५. सचित्तविहि - सचित्त बीज, वनस्पति, पानी, नमक आदि की मर्यादा। २६. दव्वविहि - जितने स्वाद बदलें उतने द्रव्य गिने जाते हैं। जैसे गेहूँ एक वस्तु है, परन्तु उसकी रोटी, पूरी, थूली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
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