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15, 17 नवम्बर 2006
जिनवाणी
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में कर्म बंधन रुकता है । प्रतिक्रमण से 'छूटुं पिछला पाप से नयां न बांधू कोय' यह उक्ति सिद्ध होती है। अतः प्रतिक्रमण आवश्यक है।
प्रतिक्रमण तीसरे वैद्य की औषधि के समान है, जिसका प्रतिदिन सेवन करने से विद्यमान रोग शांत हो जाते हैं, रोग नहीं होने पर उस औषधि के प्रभाव से वर्ण, रूप, यौवन और लावण्य आदि में वृद्धि होती है और भविष्य में रोग नहीं होते। इसी तरह यदि दोष लगे हों तो प्रतिक्रमण द्वारा उनकी शुद्धि हो जाती है और दोष नहीं लगा हो तो प्रतिक्रमण चारित्र की विशेष शुद्धि करता है। इसलिए प्रतिक्रमण सभी के लिए समान रूप से आवश्यक है ।
संदर्भ
१. आया सामाइए, आया सामाइयस्स अट्ठे । भगवती सूत्र शतक १, उद्देशक ९
२. जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे नियमे तवे । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलि भासियं ।। जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य । तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलि भासियं ॥
३. सामाइएणं भंते! जीवे किं जणयइ ? सामाइएणं सावज्जजोगविरई जणयइ ||
४. चउव्वीसत्थएणं भंते! जीवे किं जणयइ ? चउव्वीसत्थएणं दंसणविसोहिं जणयइ ।।
- अनुयोगद्वार सूत्र
- उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २९
५. वंदएणं भंते! जीवे किं जणयइ ? वंदएणं नीयागोयं कम्मं खवेइ उच्चागोयं निबंधइ सोहग्गं च ण अप्पडिहयं आणाफलं निवत्तेइ, दाहिणभाव च णं जणयइ ।
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-उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २९
- उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २९
६. पडिक्कमणेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? पडिक्कमणेणं वयच्छिदाई पिहेs, पिहियवयच्छिद्दे पुण जीवे णिरुद्धासवे असबलचरित्ते अट्ठसु पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते सुप्पणिहिए विहरइ । -उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २९
७. काउस्सग्गेणं भंते! जीवे किं जणयइ ? काउस्सग्गेणं तीयपडुप्पण्णं पायच्छित्तं विसोहेइ विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे
णिव्यहियए ओहरिय भरुव्व भारवहे पसत्थज्झाणोवगए सुहं सुहेणं विहरइ । -उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २९
८. पच्चक्खाणं भंते! जीवे किं जणयइ ? पच्चक्खाणेणं आसवदाराई णिरुंभइ, पच्चक्खाणेणं इच्छा णिरोहं जणयइ, इच्छाणिरोहं गए य णं जीवे सव्वदव्वेसु विणीयतण्हे सीइभूए विहरइ । उत्तराध्ययन सूत्र अ. २९
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