SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 134 जिनवाणी 15, 17 नवम्बर 2006 २. प्रतिक्रमण - पंचमहाव्रतादि में लगे हुए अतिचारों से निवृत्त होकर महाव्रतों की निर्मलता में पुनः प्रविष्ट होने वाले जीव के उस परिणाम का नाम 'प्रतिक्रमण' है । अथवा जिस परिणाम से चारित्र में लगे अतिचारों को हटाकर जीव चारित्र शुद्धि में प्रवृत्त हो तो वह परिणाम प्रतिक्रमण है। ३. प्रतिक्रमितव्य- भाव, गृह आदि क्षेत्र, दिवस, मुहूर्त आदि दोषजनक काल तथा सचित्त, अचित्त एवं मिश्र रूप द्रव्य जो पापास्रव के कारण हों वे सब 'प्रतिक्रमितव्य' हैं । प्रतिक्रमण के भेद प्रतिक्रमण के मूलतः भाव प्रतिक्रमण एवं द्रव्य प्रतिक्रमण ये दो भेद हैं १. भाव प्रतिक्रमण - मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और अप्रशस्त योग इन सबकी आलोचना अर्थात् गुरु के सम्मुख अपने द्वारा किये अपराधों का निवेदन करना, निन्दा और गर्हा के द्वारा प्रतिक्रमण करके पुनः दोष में प्रवृत्त न होना भाव प्रतिक्रमण है । भावयुक्त श्रमण जिन अतिचारों के नाशार्थ प्रतिक्रमण सूत्र बोलता और सुनता है वह विपुल निर्जरा करता हुआ सभी दोषों का नाश करता है। २. द्रव्य प्रतिक्रमण- उपर्युक्त विधि से जो अपने दोष परिहार नहीं करता और सूत्रमात्र सुन लेता है, निन्दा - गर्हा से दूर रहता है उसका 'द्रव्य प्रतिक्रमण' होता है, क्योंकि विशुद्ध परिणाम रहित होकर द्रव्यीभूत दोष युक्त मन से जिन दोषों के नाशार्थ प्रतिक्रमण किया जाता है, वे दोष नष्ट नहीं होते। अतः उसे 'द्रव्य प्रतिक्रमण' कहते हैं । द्रव्य सामायिक की तरह द्रव्य प्रतिक्रमण के भी आगम और नोआगम आदि भेद-प्रभेद किये जा सकते हैं। निक्षेप दृष्टि से प्रतिक्रमण के भेद मूलाचार में कहा गया है णामठवणा दव्वे खेत्ते काले तहेव भावे य । एसो पडिक्कमणगे णिक्खेवो छव्विहो णेओ ।। -मूलाचार, ६१४ निक्षेप दृष्टि से प्रतिक्रमण के छह भेद हैं १. नाम प्रतिक्रमण - अयोग्य नामोच्चारण से निवृत्त होना अथवा प्रतिक्रमण दण्डक के शब्दों का उच्चारण करना नाम प्रतिक्रमण है। २. स्थापना प्रतिक्रमण - सराग स्थापनाओं से अपने परिणामों को हटाना स्थापना - प्रतिक्रमण है। ३. द्रव्य प्रतिक्रमण- सावद्य द्रव्य सेवन के परिणामों को हटाना 'द्रव्य प्रतिक्रमण' है। ४. क्षेत्र प्रतिक्रमण - क्षेत्र के आश्रय से होने वाले अतिचारों से निवृत्त होना क्षेत्र प्रतिक्रमण है । ५. काल प्रतिक्रमण - काल के आश्रय या निमित्त से होने वाले अतिचारों से निवृत्त होना काल प्रतिक्रमण है। ६. भाव प्रतिक्रमण - राग, द्वेष, क्रोधादि से उत्पन्न अतिचारों से निवृत्त होना भाव प्रतिक्रमण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002748
Book TitleJinvani Special issue on Pratikraman November 2006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2006
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy