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15,17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 130
तपागच्छीय प्रतिक्रमण में प्रमुख तीन सूत्र-स्तवन
श्री छगनलाल जैन
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श्वेताम्बर जैन मूर्तिपूजकों की तपागच्छ परम्परा के प्रचलित प्रतिक्रमण में वन्दित्तु सूत्र प्रमुख है जो देवसिय, राइय, पक्खिय, चउम्मासिय एवं संवच्छरिय - सभी प्रतिक्रमणों में बोला जाता है, क्योंकि इस पाठ से १२ व्रतों के अतिचारों की आलोचना होती है। सकलार्हत् एवं अजितशान्तिस्तवन पक्खिय, चउम्मासिय एवं संवच्छरिय प्रतिक्रमणों में बोले जाते हैं। -सम्पादक
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तपागच्छ परम्परा के वर्तमान में प्रचलित प्रतिक्रमण में तीन पाठ प्रमुख हैं- १. वंदित्तु सूत्र २. सकलार्हत् स्तवन ३. अजितशान्ति स्तवन । यहाँ पर इन तीनों पर प्रकाश डाला जा रहा है। वंदित्तु सूत्र
वंदित्तु सूत्र को श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र भी कहा जाता है। यह पद्यमय है तथा 'वंदित्तु' शब्द से प्रारम्भ होने के कारण इसका नाम 'वंदित्तु' सूत्र है। इसमें कुल पचास गाथाएँ हैं। श्रावकों के बारह व्रतों एवं अतिचारों से यह सूत्र सम्बन्धित है। बारह व्रत इस प्रकार हैं- पाँच अणुव्रत-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। तीन गुणव्रत- दिशा परिमाण व्रत, उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत, अनर्थदण्ड व्रत; एवं चार शिक्षाव्रत- सामायिक व्रत, देशावकाशिक व्रत, पौषधोपवास व्रत एवं अतिथिसंविभाग व्रत। दिन में, रात्रि में, एक पखवाड़े में, चार माह में अथवा वर्षभर में इन व्रतों के पालन में जो दोष लगे हैं, उनका हृदय से पश्चात्ताप करना ही प्रतिक्रमण है। इन व्रतों एवं अतिचारों के संबंध में अगार धर्म में, तत्त्वार्थ सूत्र सप्तम अध्याय एवं इस वंदित्तु सूत्र' की गाथाओं में विस्तार से वर्णन है। जो अतिचार सामान्यतः कम जानकारी में आते हैं संक्षेप में मात्र उनका वर्णन यहाँ पुनरावृत्ति दोष से बचने हेतु किया जा रहा है। साथ ही सूत्र में सम्यग्दर्शन के दोषों का का भी उल्लेख प्राप्त है, जिनकी सभी प्रतिक्रमणों में आलोयणा की जाती है।
संका कंखा, विगिच्छा, पसंस तह संथवो कुलिंगीसु।
सम्मत्तस्सइयारे, पडिक्कमे देसिअंसव्वं ।। -वंदित्तु सूत्र, गाथा ६ जिनवचन में शंका, धर्म के फल की आकांक्षा, साधु-साध्वी के मलिन वस्त्रों पर घृणा, मिथ्यात्वियों की प्रशंसा, उनकी स्तवना सम्यग्दर्शन के पाँच अतिचार हैं। इसी तरह पृथ्वीकायिकादि जीवों के समारंभ से प्राणियों को बाँधने से, नाक, कानादि छेदने से, किसी का रहस्य खोलने से, कूट तोल-माप रखने, झूठा दस्तावेज लिखने, चोरी की वस्तु रखने, नकली वस्तु असली के दाम में बेचने, परस्त्रीगमन, अपरिग्रह व्रत में हेर-फेर करने, अनर्थदण्ड के कार्य, व्यर्थ प्रलाप, अनावश्यक वस्तु-संग्रह, स्वाद की गुलामी, पाप कार्य में साक्षी, सामायिक में समभाव नहीं, समय मर्यादा नहीं पालना, नींद लेना, दिग्व्रत का उचित पालन नहीं
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