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[102 || जिनवाणी
|15,17 नवम्बर 2006 दुक्कडं' मेरी गलती का मैं पश्चात्ताप करती हूँ और इसी प्रतिक्रमण से आर्या चन्दना को केवलज्ञान हो गया। यह है भाव प्रतिक्रमण। यह दुष्कृत मैंने किया, यह दुष्कृत मैंने कराया, इस दुष्कृत का अनुमोदन किया, ऐसे तीव्र संवेग से अन्तःकरण कम्पायमान हो जाय और भीतर ही भीतर पश्चात्ताप की अग्नि से वह दुष्ट कृत्य भस्म हो जाय, ऐसी स्वनिन्दा का भाव ‘भाव-प्रतिक्रमण' है। मृगावती ने भी भाव प्रतिक्रमण किया और आर्या चन्दना ने भी। प्रतिक्रमण में अहंकार और ममकार की निवृत्ति तथा सावध योग की निवृत्ति होने से कहा जाता है
___ 'निन्दामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि।' प्रतिक्रमण को विभिन्न समानार्थक शब्दों से समझाने का प्रयास भद्रबाहु की आवश्यक नियुक्ति पर हरिभद्र की टीका में किया गया है।
प्रतिक्रमण (पडिकमणं), प्रतिचरण (पडिचरण), परिहरण (पडिहरण), वारण (वारण), निवृत्ति (नियत्ती), निंदा (निंदा), गर्हा (गरिहा), शुद्धि (सोही)। ये आठ प्रतिक्रमण के पर्याय हैं। हरिभद्र की आवश्यक नियुक्ति टीका में इनका नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव इन छः निक्षेपों द्वारा निरूपण किया गया है। प्रतिक्रमण- ‘प्रति' उपसर्गपूर्वक ‘क्रम' धातु (गमन करना, कदम बढ़ाना) से 'ल्युट्' प्रत्यय लगकर यह 'प्रतिक्रमण' शब्द बना है जिसका अर्थ है मिथ्यात्ववश हम जिसे अनुकूल या प्रिय मानते हैं उस पाप मार्ग से विपरीत प्रतिकूल प्रतीत होने वाले सम्यक्त्व रूपी श्रेय मार्ग की ओर लौटना प्रतिक्रमण है। मन-वचन-काया से किये गये अशुभ कर्म अप्रशस्त योग हैं, इनका त्याग करे और ध्यान तथा मन-वचन-काया से कृत शुभ पुण्य कर्म प्रशस्त योग है, इस प्रशस्त योग का अभ्यास करे। ध्यान में भी अशुभ ध्यान आर्त और रौद्र का त्याग करे तथा धर्म और शुक्ल ध्यान का सतत अभ्यास करे। प्रतिचरण- ‘चर्' धातु गति तथा भक्षण अर्थों में प्रयुक्त होती है। 'प्रति' उपसर्ग पूर्वक 'चर्' धातु से 'ल्युट्' प्रत्यय लगकर प्रतिचरण बना। शुभयोग में गति करना या शुभ योग का आसेवन करना प्रतिचरण है। अतः यह प्रतिक्रमण का पर्याय कहा जाता है। परिहरण- ‘परि' उपसर्ग पूर्वक 'ह' धातु (हरण करना) से 'ल्युट्' प्रत्यय लगकर ‘परिहरण' शब्द बना है। विराधना का परिहार करने वाली प्रतिलेखन आदि विधि परिहरण है। अशुभ योग का परिहरण करने के कारण परिहरण को प्रतिक्रमण का पर्याय माना। वारणा- वारणा का अर्थ है निषेध। वारण शब्द 'वारि' (वृ+णिच्) (रोकना, निषेध करना) धातु से ल्युट् प्रत्यय लगकर बना है। संयमादि का निषेध अप्रशस्त वारण है तथा प्रमाद का निषेध प्रशस्त वारण है। निवृत्ति- इसी प्रकार निवृत्ति (नि+वृत्+क्तिन्) भी अशुभ योग से निवृत्ति का पर्याय होने से प्रतिक्रमण का पर्याय कही जाती है।
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