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४४०/ साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
दृष्टि किसी के प्रति राग द्वेष की नहीं होती है अतः सम्प्रदाय के झगड़ों को हल करने का एक मात्र उत्तम उपाय है कि अनेकान्तवाद के सिद्धान्त को समझा जाय उसे समझाया जाय। उसका प्रचार प्रसार किया गया, उसका प्रशिक्षण दिया जाय। विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में अनेकांतवाद को भी स्थान देकर उसे सर्वसुलभ बनाकर विभिन्न आग्रहों से मुक्ति पाई जा सकती है।
भारत जैसे बड़े विस्तार और आबादी वाले देश में, जिसके आचार-विचार के विकास का इतिहास संसार में अत्यंत प्राचीन है, जिसके जनसमुद्र में समय - समय पर बाहरी सरिताएँ आकर मिलती गई वहाँ धार्मिक सम्प्रदायों के अनेक विभाग होना अस्वाभाविक बात नहीं है। भारत देश में संसार के प्रायः सभी धर्मों के लोग निवास करते हैं। इसलिए यदि यहाँ सभी धर्मों के मेल का आदर्श स्थापित हो जाय तो सारी दुनिया पर इसका प्रभाव पड़ेगा और संसार के लिए भारत पथप्रदर्शक हो जायेगा। यह तब ही संभव है जब सभी के हृदय में अनेकान्तवाद को बसाया जाय। अनेकता में एकता स्थापित करने वाली दृष्टि इसी अनेकान्तवाद के सिद्धान्त से स्थापित की जा सकती है।
(१०) स्त्री पुरुष की समानता की मांग : एक समस्या
जिस तरह नारी का अविकसित होना एक समस्या है उसी तरह नारी का पुरुषों के समान शिक्षित व संस्कारित होना, पुरुषों के साथ समानता की मांग होना यह भी एक गंभीर समस्या है। मनुष्य के इतिहास में नारी जाति के साथ सदा ही अन्याय तथा अत्याचार होता आया है। हजारों वर्षों तक स्त्रियों को पुरुषों से हीन, पैरों ही जूती या दासी के समान समझा जाता रहा हैं। पुरुषों ने उसे अनपढ़ अशिक्षित और घर की चार दिवारों में कैद करके रखा। चीन में हजारों वर्षों तक यह माना जाता रहा कि स्त्रियों के भीतर कोई आत्मा ही नहीं होती है। जैसे अन्य उपभोग की वस्तुएँ है वैसे ही स्त्री भी उपभोग की वस्तु है। आज से सौ वर्ष पूर्व चीन में कोई पुरुष अपनी स्त्री की हत्या कर दे तो उसे कोई दण्ड नहीं दिया जाता था। क्यों कि पुरुष की अन्य सम्पत्ति के समान स्त्री को भी पुरुष की सम्पत्ति माना जाता था। स्त्रियों को स्वतंत्र सोचने का उनके गुणों को विकसित करने का उन्हें मौका ही नहीं मिला। भारत में भी लड़के और लड़कियों के बीच आकाश - पाताल जैसा अन्तर किया जाता है। लड़की के जन्म पर उदासी छा जाती है और लड़के का जन्म हो तो मिठाईयाँ बांटी जाती है। उनके खाने पीने की वस्तुओं में, स्नेह में आदि में भेदभाव किया जाता है। विवाह के समय भी यह
तस्यानेकान्तवादस्य वव न्यूनाधिकशेमुषी ।। अध्यात्मोपनिषद - यशोविजयजी
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