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उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद/ ४३१ ५. मैं धार्मिक सहिष्णुता रखूगा। (साम्प्रदायिक उत्तेजना नहीं
फैलाऊंगा।) ६. मैं व्यवसाय और व्यवहार में प्रामाणिक रहुंगा।
(अ) अपने लाभ के लिए दूसरों को हानि नहीं पहुँचाऊँगा। (ब) कपटपूर्वक व्यवहार नहीं करूंगा। (स) मैं इन्द्रियसंयम की साधना करुंगा।
मैं संग्रह या व्यक्तिगत स्वामित्व की सीमा का निर्धारण करुंगा। ८. मैं चुनाव के सम्बन्ध में अनैतिक आचरण नहीं करूंगा।
(अ) मैं प्रलोभन और भय से मत प्राप्त नहीं करूंगा। (ब) मैं प्रतिपक्षी प्रत्याशी का चरित्र हनन नहीं करूंगा। (स) मैं मतदान और मतगणना के समय अवैध तरीकों
को काम में नहीं लूंगा। मैं सामाजिक कुरुतियों को प्रश्रय नहीं दूंगा। मैं व्यसन मुक्त जीवन जीऊँगा- मादक तथा नशीले पदार्थोंशराब, गांजा, चरस, हेरोइन, भांग, तम्बाकू आदि का सेवन
नहीं करूंगा। ११. मैं पर्यावरण की समस्या के प्रति जागरुक रहूंगा।
(अ) हरे-भरे वृक्ष नहीं काटूंगा।
(ब) पानी का अपव्यय नहीं करूंगा। उपर्युक्त नियम किसी सम्प्रदाय से जुड़े हुए नहीं है। यह धर्म का नैतिक पक्ष है। विधानसभा और लोकसभा के सदस्यों के लिए इन निर्धारित नियमों से प्रशिक्षित करना आवश्यक हैं। “कमन्दकीय नीतिसार में नेता कौन हो सकता है, इसकी सुन्दर व्याख्या की है- उदार, शास्त्रसम्मत बोलने वाला, वाग्मी स्मृतिमान,
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