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________________ ४१० / साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री नहीं आता है, तनाव में नहीं आता है। निन्दा स्तुति को समान समझने वाला मननशील व्यक्ति समत्व भाव को प्राप्त करता है।७७२ डाँ. सागरमल जैन ७७३ ने समत्व के क्रियान्वयन के चार सूत्र बताये १. वृत्ति में अनासक्ति, २ . विचार में अनाग्रह ३. वैयक्तिक जीवन में असंग्रह ४. सामाजिक आचरण में अहिंसा यहीं समत्व योग की साधना का व्यावहारिक पक्ष है । अहंकार, ममत्व और तृष्णा का विसर्जन समत्व के सर्जन के लिए आवश्यक है । यह समत्व व्यक्ति को तनाव मुक्त रखता है। कायोत्यर्ग से तनाव मुक्ति ७७४ कायोत्सर्ग की खोज अध्यात्म की ऐसी खोज है जो जीवन में आने वाले तनाव का वास्तविक उपचार है । हमारे आचरणों, व्यवहारों घटनाओं परिस्थितियों का जो दिमाग पर मानसिक बोझ होता है कायोत्सर्ग करते ही एकदम हल्का हो जाता है। व्यक्ति असिम सुख और शांति का अपुभव करता है। शारीरिक तनाव से मुक्ति तथा स्वास्थ्य की उपलब्धि कायोत्सर्ग से प्राप्त होती है। हठयोग का शब्द है शवासन और जैन योग का शब्द है कायोत्सर्ग अर्थात काया के प्रति ममत्व का विसर्जन करना। इसमें शारीरिक प्रवृतियों का शिथिलीकरण होता है। साथ ही चैतन्य के प्रति जागरुकता होती है। ‘कायोत्सर्ग सब दुखों से छूटकारा दिलाने वाला है 'भगवान महावीर के इस वाक्य की आचार्य महाप्रज्ञ' ने वैज्ञानिक सन्दर्भ में व्याख्या करते हुए कहा है कि मस्तिष्क की कई तरंगे है, अल्फा, बीटा, थीटा, गामा आदि। जब-जब अल्फा तरंगे होती है मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है, शान्ति प्रस्फुटित होती है। कायोत्सर्ग की स्थिति में अल्फा तरंग को विकसित होने का मौका मिलता है। कायोत्सर्ग किया और अल्फा तरंगे उठने लग जाएगी, मानसिक तनाव घटना शुरु हो जायेगा। प्राचीन काल में प्रायश्चित की एक विधि कायोत्सर्ग भी रही अमुक व्यवहार अकरणीय हो गया तो आठ श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग, पन्द्रह श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग क्रमशः हजार श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग । इससे हृदय का बोझ उतर जाता है और वह बिल्कुल हल्का हो जाता है। कायोत्सर्ग खड़े-खड़े बैठकर या लेटकर भी किया जा सकता है। ७७२. गीता २/१५, ४/२३, ७७३. जैन बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन - डाँ सागरमल जैन ७७४. महावीर का स्वास्थ्य शास्त्र पृष्ठ - १०८ आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002747
Book TitleYashovijayji ka Adhyatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPreetidarshanashreeji
PublisherRajendrasuri Jain Granthmala
Publication Year2009
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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