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४०८/साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री
है कि जहाँ-जहाँ स्पृहा है, वहाँ-वहाँ दुःख है और जहाँ निस्पृहता है वहीं सुख
है।७६६
विश्व को तनाव से मुक्त करने के लिए उ. यशोविजयजी ने अध्यात्मोपनिषद में साम्ययोग की चर्चा की है। समत्व का विकास ही तनाव के विनाश में सहायक हो सकता है। आध्यात्मिक प्रक्रिया को छोड़कर दूसरी कोई प्रक्रिया तनाव विसर्जन का मार्ग प्रशस्त नहीं कर सकती है। डॉक्टर शामक
औषधियाँ देकर तनाव को दबा देता है किन्तु दवा लेने पर थोड़ी देर राहत मिलती है फिर वही उत्तेजना और तनाव उभर आता है। कुछ व्यक्ति नशे के द्वारा तनाव से मुक्त होने की कोशिश करते है। किंतु यह समस्या का समाधान नहीं है। तनाव हमारी गलत धारणाओं, मिथ्या मान्यताओं के कारण उत्पन्न होता है। अतः तनाव से मुक्त होने के लिए सम्यक् ज्ञान या सम्यक् समझ की आवश्यकता है। जब तक चित्त में निर्मलता नहीं आएगी तब तक तनाव की समस्या भी बनी रहेगी। इसलिए आवश्यक हैं चित्तवृत्ति का परिष्कार उ. यशोविजयजी ने इसलिए साम्य योग की चर्चा करते हुए उसे साधने के लिए चार उपाय बताये हैं। जिन्हें व्यावहारिक जीवन में लागू करने से विश्व शांति की कल्पना साकार हो सकती है।
(१) आत्मा (स्वयं) की वृत्तियों के प्रति जागृत रहना । (२) पर की प्रवृत्तियों को देखने में अंधे के समान बन जाना । (३) पर निन्दा सुनने में बहरे और (४) कहने में गुगें।७७०
गांधी जी के तीन बन्दरों का अनुसरण करते हुए परपंचायत करने में अंधे गूंगे बहरे हो जाने पर तथा 'स्व' की वृत्तियों के प्रति जागरुक होने पर अशांति या तनाव की समस्या का हल हो जाता है। शरीर मन, वाणी और भावों के प्रति जागरुक रहने का अर्थ है कि इनके द्वारा कोई गलत प्रवृत्ति न हो।
७६६. परस्पृहा महादुःखं निस्पृहत्वं महासुखम्।।
एतदुक्तं समासेन लक्षणं सुखदुःखयो ।।८।। -निस्पृहताष्टक १२/८, ज्ञानसार, उ.
यशोविजयजी ७७०. आत्मप्रवृत्तावतिजागरुकः पर प्रवृत्तौ बधिरान्मूकः।
सदाचिदानन्दपदोपयोगी, लोकोत्तरं साम्यमुपैति योगी।RIFअध्यात्मोपनिषद ४/२, उ. यशोविजयजी
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