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साधना की भूमिकाएं
किंतु उपादान के होने पर निमित्त होते हैं तो रोग निश्चित ही होगा । मूल बात है उपादान | निमित्त उसके सहायक होते हैं । जब सारा ध्यान सहायक तत्त्वों पर, निमित्तों या वातावरण पर दे देते हैं तब कठिनाई पैदा होती है । सम्यग्दर्शन की जागृति होने पर व्यक्ति का ध्यान निमित्तों से हटकर उपादान पर जाता है । वह निमित्तों की सर्वथा उपेक्षा नहीं करता । उनको भी यह उचित मूल्य देता है किंतु उन्हें उपादान का स्थान नहीं देता, उन्हें मूल नहीं मानता, गौण मानता है ।
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