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________________ अंतर्दृष्टि (४) अनेकांतदृष्टि और फलित अंतर्दृष्टि के जागने पर सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है, आग्रह टूट जाता है, अनेकांतदृष्टि विकसित हो जाती है । मनुष्य आग्रह से भरा होता है । वह किसी एक बात को जानकर उसको परमसत्य मान लेता है । उसका वह आग्रह करने लगता है । वह उसे अंतिम सत्य मान लेता है । फिर कोई नया सत्य सामने आता है, वह उसे अस्वीकार कर देता है । किंतु जब अनेकांत की चेतना विकसित होती है तब कोई आग्रह अवशेष नहीं रहता। जो पहले कहा वही सत्य है या जो पहले जाना वही सत्य है, ऐसी धारणा नहीं होती । पहले कही हुई बात या पहले जाना हुआ सत्य भी बदला जा सकता है | कुछ लोग कहते हैं कि पहले ऐसा कहा था, आज ऐसा कहा जा रहा है, यह क्यों ? ऐसा हो सकता है । उस दिन जो जाना था, वह कहा था, आज जो नया सत्य ज्ञात हुआ है, वह कहा जा रहा है। ___ साधना के क्षेत्र में भी कुछ एकांतिक आग्रह हो जाता है | कुछ लोग एक पद्धति को स्वीकार करते हैं, वे दूसरी पद्धति की उपयोगिता को अस्वीकार करना पसंद करते हैं । अनेकांतदृष्टि जागने पर ऐसा नहीं होता । पहले एक आग्रह था कि साधना जंगल में ही हो सकती है, किंतु अनेकांतदृष्टि के परिप्रेक्ष्य में जब सोचा गया तो यह धारणा टूट गई । यह भी सोचा गया कि साधना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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