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________________ साधना की भूमिकाए८३ गांव में भी हो सकती है । साधना अकेले में ही हो सकती है, यह आग्रह भी नहीं होना चाहिए । साधना सामुदाय में भी हो सकती है। समूह में जो वातावरण मिलता है, वह अकेले में नहीं मिलता। कुछ साधनाएं ऐसी होती हैं जो अकेले में ही हो सकती हैं, समूह में नहीं हो सकतीं । कोई एकांतिक आग्रह नहीं रहता । स्मृति का निषेध किया जाता है कि ध्यान काल में स्मृति न हो। किंतु साधना में स्मृति का भी उपभोग होता है। एकाग्रता है क्या ? ध्रुव स्मृति ही एकाग्रता है। एक वस्तु पर स्मृति निरंतर होती है, वह एकाग्रता बन जाती है । साधना में कल्पना नहीं होनी चाहिए, किंतु संकल्प - शक्ति का उपयोग किया जाता है । संकल्प-शक्ति के विकसित होने पर ध्यान के एक नए परिप्रेक्ष्य में व्यक्ति पहुंच जाता है । इस शक्ति के सहारे अनेक उपलब्धियां होती हैं । इस प्रकार ध्यान में कल्पना का भी उपयोग है, संकल्प का भी उपयोग है । संकल्प की शक्ति असीम एक मानसिक चित्र का हम निर्माण करते हैं । आज वह घटना घटित नहीं है, किंतु जब संकल्प शक्ति के द्वारा एक मानसिक चित्र का निर्माण हो गया तो उस घटना को घटित होना ही पड़ेगा । उसे कोई रोक नहीं सकता । जैसे एक आदमी अपनी अंगुलियों से एक स्थूल वस्तु का निर्माण करता है । वस्तु भी स्थूल और अंगुलियां भी स्थूल । वह वस्तु हमारे सामने स्पष्ट रूप ले लेती है । जिस रंग से आदमी उस चित्र को रंगता है वह रंग उसमें उभर आता है | उसने अर्हम् लिखना चाहा तो अर्हम् लिख दिया । जिस रंग में लिखना चाहा, उस रंग में लिख दिया । जिस प्रकार वह अंगुलियों से लिखता है, चित्र बनाता है, उसी प्रकार वह संकल्प - शक्ति से भी वह काम कर सकता है । कहना चाहिए कि अंगुलियों की शक्ति से बहुत अधिक शक्ति होती है संकल्प में। अंगुलियों की शक्ति की सीमा है, संकल्प शक्ति असीम होती है । अंगुलियां स्थूल हैं । वे हमें प्राप्त हैं। उनका उपयोग करना हम जानते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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