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________________ साधना की भूमिकाएं७३ पैदा होता है, चिनगारियां उछलती हैं। दो होने के साथ विशेषताएं भी हैं और दो होने के साथ कठिनाइयां और समस्याएं भी हैं। अकेले आदमी ने कभी लड़ाई न की हो, ऐसा भी कहीं नहीं मिलता। दो में कभी न कभी टकराहट हो ही जाती है । निरंतर साथ रहने वाले पिता-पुत्र, पति-पत्नी भी बिना टकराहट के नहीं रह पाते । प्रतिबिंब से भी टकराहट हो जाती है | चिड़िया कांच पर बैठती है और अपने ही प्रतिबिंब से लड़ने लग जाती है । वह प्रतिबिंबित चिड़िया के चोंच मारती जाती है, जब तक कि उसकी चोंच घायल नहीं हो जाती । शेर ने पानी में अपना प्रतिबिंब देखा और उसे मारने के लिए दौड़ा । वह पानी में डूबकर मर गया, अपने प्राण न्योछावर कर दिये किंतु वह बिना टकराहट के नहीं रह सका । जब प्रतिबिंब से भी टकराहट हो जाती है तो साक्षात् में बिना टकराहट के रहना असंभव सा हो जाता है । अकेला होना : एक सचाई I उपनिषद्कार कहते हैं- 'द्वितीयाद् वै भयम् ।' जब दूसरा होता है तब भय उत्पन्न होता है । जब दूसरा होता है तब कार्य में बाधा आती है, स्वतंत्रता खंडित हो जाती है | अकेले में व्यक्ति जो कुछ चाहे कर सकता है, किंतु जब दूसरे के आने की आशंका होती है तब सावधान हो जाता है । मनचाहा कर नहीं सकता । इस प्रकार दूसरा होता है तब आशंका उत्पन्न होती है, भय होता है, संघर्ष होता है । इस पहलू को ध्यान में रखना है । अकेला होना अस्वाभाविक नहीं है, असामाजिक नहीं है । जो व्यक्ति समाज में रहता हुआ भी अपने आपको अकेला अनुभव करता है वह हजारों समस्याओं से बच जाता है। आचार्य भिक्षु ने कहा- गण में रहूं निरदाव अकेलो' मैं संघ में रहकर भी अकेला रहूंगा । यह साधना का मूल्यवान सूत्र है । व्यक्ति ने मान लिया कि यह मेरा है, किंतु जब उसे अपनी भावना की पूर्ति नहीं होती तब वह सिरदर्द बन जाता है । वेदना होती है, पीड़ा होती है। अगर किसी को अपना नहीं माना, फिर चाहे वह गाली भी देता है तो कोई वेदना नहीं होती, कष्ट नहीं होता । जिसे अपना मान लिया वह यदि थोड़ी-सी भी चुभती बात कहता है तो भयंकर वेदना होती हैं, समस्या उभर आती है । जो मेरेपन से जितना अधिक निकट होता है, उसकी बात ज्यादा चुभती है । पड़ोसी ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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