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साधना की भूमिकाएं - ५३ अपौद्गलिकता की सीमा में नहीं जा सके । चाहे कम्प्यूटर की त्वरित शक्ति हो चाहे चतुर्दशपूर्वी की त्वरित शक्ति हो, यह है सारी पौद्गलिक सीमा में। कम्प्यूटर विद्युत् की धारा के सहारे अपना कार्य करता है और चतुर्दशपूर्वी तैजस शरीर की विद्युत-धारा के सहारे अपना कार्य करता है । विद्युत्-धारा भी पौद्गलिक है और तैजस शरीर भी पौद्गलिक है । वे अ-पौद्गलिक नहीं
हैं।
समाधान नहीं
समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ । तत्त्व-चिंतन के आधार, पर तर्क के आधार पर, दर्शन के आधार पर, दार्शनिक प्रतिपादनों के आधार पर, तार्किक निर्णयों, समीक्षाओं और प्रत्ययों के आधार पर आत्मा और अनात्मा, चेतन और अचेतन, पुद्गल और अ-पुद्गल का निर्णय किया जा सकता है-यह आज तक प्रतिभाषित नहीं हुआ । इनके द्वारा कभी समाधान हो ही नहीं सकता। तर्क का एक प्रवाह होता है । दुर्बल तर्क वाला परास्त हो जाता है और सबल तर्क उस पर हावी हो जाता है । यह जय और पराजय की बात हो सकती है, किंतु यह निर्णय की बात नहीं हो सकती । समूचे दर्शन और तर्क के क्षेत्र में, समूचे न्यायिक क्षेत्र में इस प्रश्न की मीमांसा हुई, किंतु आज तक उसका समाधान नहीं हो सका | आज हजारों वर्षों की चर्चाओं के बाद भी वैसे-के-वैसे दो खेमे बने हुए है । एक खेमा है आत्मा को मानने वालों का और दूसरा खेमा है आत्मा को नहीं मानने वालों का । आत्मा को मानने वालों के अपने तर्क हैं और आत्मा को नकाराने वालों के अपने तर्क हैं। दोनों अपने-अपने मत का प्रबलतम सर्मथन करते हैं। कोई किसी के आगे झुका नहीं है । कोई किसी को झुका नहीं सका है । दोनों के तर्क अपनीअपनी रणभूमि की सीमा में आमने-सामने खड़े हैं । कोई किसी को परास्त नहीं कर पा रहा है। समाधान का हेतु-अध्यात्म
अध्यात्म का विकास जिस व्यक्ति में होता है वह इस शाश्वत प्रश्न का समाधान पा लेता है । चाहे वह यह समाधान दूसरों को न दे सके, किंतु
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