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________________ ५२ जैन योग पौद्गलिक है । हम जिस शरीर से सारे क्रिया-कलापों का संचालन करते हैं वह शरीर पौद्गलिक है । हम जिस स्मृति से याद करते हैं वह स्मृति पौद्गलिक है । इस प्रकार स्मृति पौद्गलिक, मनन-चिंतन पौद्गलिक, मन पौद्गलिक, इंद्रियां पौद्गलिक, फिर हमारे पास ऐसा कौन-सा साधन रहा जो अपौद्गलिक सत्ता की स्थापना कर सके ? कम्प्यूटर ने इतने चमत्कारी कार्य कर दिखाये कि मनुष्य का मस्तिष्क भी उन्हें नहीं कर सकता । हमारे सारे ज्ञान का वाहक है मस्तिष्क । सारे तर्क, सारी विचारणाएं इसी के द्वारा स्फुरित होती हैं । वह मस्तिष्क पौद्गलिक है । कम्प्यूटर सबसे बड़ा मस्तिष्क है । उसकी तुलना सामान्य ज्ञानी नहीं कर सकता । उसकी तुलना कोई चतुर्दशपूर्वी ही कर सकता है । लब्धियों की विचित्र शक्ति तीन शब्द हैं - मनोबली, वचनबली और कायबली । जिस साधक को मनोबल लब्धि प्राप्त होती है वह अंतर्मुहूर्त में चौदह पूर्वों का परावर्तन कर सकता है । पूर्व अथाह ज्ञान के भंडार हैं । उनका परावर्तन ४८ मिनिट में करना विशिष्ट शक्ति का द्योतक है । जिसे वचनबल लब्धि प्राप्त है, वह पूर्व की ज्ञानराशि का उच्चारण अंतर्मुहूर्त में कर सकता है । यह बात बुद्धिगम्य नहीं होती, किंतु कम्प्यूटर के आविष्कार ने इस बात को बुद्धिगम्य बना डाला, समस्या का हल कर डाला । कम्प्यूटर एक सेकण्ड में एक लाख छियासी हजार गणित के भागों (विकल्पों ) का गणित कर लेता है । विद्युत की जितनी गति है, उसके अनुसार वह कार्य कर लेता है । विद्युत् की गति एक सेकण्ड में १,८६,००० मील की है । इतनी ही तीव्र गति से कम्प्यूटर गणित के विकल्पों का गणित कर लेता है । विद्युत् की गति से चलने वाला कम्प्यूटर एक सेकंड में इतना बड़ा काम कर सकता है तो चतुर्दशपूर्वी एक अंतमुहूर्त में सारे ज्ञान का पारायण या उच्चारण क्यों नहीं कर सकता ? कर सकता है । कम्प्यूटर के पास विद्युत् की शक्ति है तो चतुर्दशपूर्वी के पास तैजस शक्ति है । उसका तेजस शरीर इतना विकसित हो जाता है, उसकी दैहिक विद्युत् इतनी तीव्रगामी हो जाती है कि वह यह काम सहजता से कर सकता है। तैजस की विद्युत् इस विद्युत् से अधिक शक्तिशाली होती है । इतना होने पर भी हम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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