________________
अन्तर्दृष्टि (१)
अन्तर्दृष्टि का सर्जन : मूढ़ता का विसर्जन
हम दो प्रकार के प्रकाशों से परिचित हैं-प्राकृतिक और कृत्रिम । सूर्य का प्रकाश प्राकृतिक है और बिजली तथा आग का प्रकाश कृत्रिम है । प्राकृतिक प्रकाश से भी देख पाते हैं और कृत्रिम प्रकाश से भी हम देख पाते हैं | प्रकाश प्रकाश है, फिर चाहे वह प्राकृतिक हो या कृत्रिम । जब प्रकाश होता है तब देखने की क्षमता का उपयोग हो जाता है । आंख होने पर भी यदि प्रकाश न हो तो हम देख नहीं पाते । देखने के लिए आंख की क्षमता भी आवश्यक है और प्रकाश भी आवश्यक है । मनुष्य के जीवन में कभी-कभी ऐसा घटित होता है कि उसे एक नया प्रकाश मिलता है । वह प्रकाश मिलता है जो आज तक नहीं मिला था । अनुपलब्ध उपलब्ध होता है, अघटित घटित होता है। ऐसा प्रकृति या निसर्ग से भी होता है और ज्ञान पर किसी दूसरे ज्ञान की चोट पर पड़ने पर भी होता है ।
जो एक अंतर्दृष्टि जागृत होती है, वह कभी-कभी निसर्ग से, प्रकृति से जागृत हो जाती है । ऐसे गूढ़ निमित्त पीछे रहते हैं, उनका हमें पता नहीं चलता और वह अंतर्दृष्टि तत्काल प्रकट हो जाती है | कभी-कभी ज्ञानी के ज्ञान की चोट खाकर हमारे अंतर की आंख खुलती है । कोई ऐसी तीव्र चोट होती है और अंतर्दृष्टि जाग जाती है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org