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________________ साधना की भूमिकाएं - ४५ भी आदमी नहीं मरता । यदि मस्तिष्क के कोष्ठों में चेतना अवशिष्ट है तो फिर चाहे हृदय बंद हो जाए, आदमी नहीं मरता । बहुत बार ऐसा होता है कि शव को चिता पर लेटा दिया | आग लगाने की तैयारी हो रही है । इतने में ही वह मृत-घोषित व्यक्ति जी उठता है और वहां से चलकर लोगों के साथ घर आ जाता है । वह वर्षों तक जीता है | बहुत आश्चर्य सा लगता है कि यह क्यों और कैसे होता है ? हृदय की धड़कन बंद हो गयी, नाड़ी का स्पंदन रुक गया और प्राणी मृत घोषित हो गया, किंतु मस्तिष्क से चेतना पूरी नहीं निकली, कुछेक कोष्ठों में वह रह गयी, वह जागृत हुई और पूरे शरीर को फिर से सक्रिय बना डाला । शरीर का सारा तंत्र फिर मे चालू हो गया । हमारे शरीर का सबसे बड़ा मूल्यवान अंग है मस्तिष्क । जब विकृत मन के द्वारा मस्तिष्क में तनाव पैदा होता है तब पूरा-का-पूरा शरीर-तंत्र विकारग्रस्त हो जाता है। शिथिलीकरण : एक प्रतिकार इस मस्तिष्क की विकृति से बचने के लिए शिथिलीकरण अत्यन्त आवश्यक है । शरीर का शिथिलीकरण होता है वैसे ही मन की अवस्था का शिथिलीकरण भी होता है । शिथिलीकरण यानी विसर्जन । मूढ़ता का शिथिलीकरण यानी मूढ़ता का विसर्जन | इसका तात्पर्य है कि ऐसी कोई भी विकृति न हो, ऐसी कोई मूर्छा की तरंग न आए, जो मस्तिष्क को विकृत बना दे । ध्यान और दीर्घश्वास का प्रयोजन भी तो यही है कि शरीर के दोष निकल जाएं । इससे व्याधियां निकलती हैं, जमे हुए मल निकलते हैं । जब हम मन को श्वास-दर्शन में लगाते हैं उस समय हम राग-द्वेष मे मुक्त क्षणों में जीते हैं । उस समय मूर्छा के दोष, मन के दोष बाहर निकलते हैं । यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है | मूढ़ अवस्था के लक्षण और पहचान मूढ़ अवस्था के लक्षण क्या हैं । उन्हें कैसे पहचाना जा सकता है ? मूढ़ अवस्था का पहला लक्षण है-विपर्यय । जो मूढ़ होता है वह विपर्यास को प्राप्त होता है । विपर्यास अर्थात विपरीत बुद्धि । उस समय दृष्टि मिथ्या हो जाती है और जो कुछ हाथ लगता है वह विपरीत ही होता है । सत्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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