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४४ - जैन योग सार्थकता नहीं है । किन्तु मन का एक पागलपन है । जब यह होता है तब दूसरे की प्रगति पर दिल जलता है, कुढ़ता है और जल-भुनकर राख हो जाता
है।
विकृति से विकृति
इस सारी मानसिक विकृतियों का प्रभाव क्या होता है ? यह एक प्रश्न है । ये मानसिक विकृतियां तनाव पैदा करती हैं । पागलपन से पहले तनाव होता है । मस्तिष्क में जब तक तनाव नहीं होता तब तक पागलपन नहीं आता। तनाव का बिंदु ही पागलपन है । हमारा मस्तिष्क शांत होना चाहिए । जब उसमें तनाव पैदा होता है, उसके तन्तु जब बहुत कस जाते हैं, तब सब-कुछ विकृत ही होता है, विकृति ही विकृति पैदा होती है | शरीर के महत्त्वपूर्ण अवयव ____ हमारे शरीर में दो-चार अवयव बहुत ही महत्वपूर्ण हैं-हृदय, गुर्दा, यकृत और मस्तिष्क । यदि गुर्दे स्वस्थ न हों तो मूत्र आदि विजातीय तत्त्वों का छनना नहीं होता । इस अवस्था में रक्त के साथ दूषित पदार्थ चले जाते हैं । उससे बड़ी-बड़ी विकृतियां पैदा होती हैं । यदि यकृत ठीक न हो तो रक्त का उचित निर्माण नहीं होता, रक्ताल्पता की बीमारी हो जाती है, मनुष्य अस्वस्थ बन जाता है । यदि हृदय ठीक काम न करे तो रक्त का संचार ठीक नहीं होता, रक्त का पंपिंग ठीक नहीं होता, रक्त की शुद्धि भी नहीं होती, शरीर अस्वस्थ बना रहता है । मनुष्य का जीना-मरना हृदय पर निर्भर है । किंतु गुर्दा, यकृत
और हृदय से भी अधिक महत्त्वपूर्ण अंग है मस्तिष्क । मस्तिष्क जब स्वस्थ होता है तब वह दूसरे सारे अंगों को ठीक कर लेता है । वह सारे शरीर का संचालक है । जितने ज्ञानवाही और क्रियावाही स्नायु हैं, उन सबका संचालन मस्तिष्क से होता है। शरीर का पूरा संचालन मस्तिष्क से होता है । यह ऐसा नियंत्रण कक्ष है जो सबका संचालन करता है । इसमें जब थोड़ी-सी विकृति होती है तब शरीर का सारा ढांचा गड़बड़ा जाता है। जब तक मस्तिष्क की चेतना ठीक है, आदमी जीता है । हम इस भ्रांति को भी दूर करें कि हृदय बंद हो जाने से आदमी मर जाता है । ऐसा नहीं है । हृदय बन्द हो जाने पर
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