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साधना की भूमिकाएं 0 ४३ भावना होती है, दूसरे के स्वत्व को हड़पने की भावना होती है । वह उसे छीनकर अपने अधिकार में लेना चाहता है । आक्रमण की यह भावना पागलपन है । जब-जब मनुष्य में पागलपन बढ़ा है तब-तब आक्रमण भावना भी बढ़ी है और जब-जब आक्रमण भावना बढ़ी है तब-तब पागलपन भी बढ़ा है | कुछ ऐसे सम्राट या शासक हुए हैं जिन्होने विश्व-विजेता बनने का स्वप्न लिया था । उन्होंने विश्व विजय के लिए प्रयत्न किए । वे उसके लिए चले । उन्हें मिला कुछ भी नहीं और जो कुछ मिला वह भी उनके पास नहीं टिका । उनके केवल मानसिक स्वप्न की तृप्तिमात्र हुई । उन्होंने मान लिया कि वे विश्व-विजेता हो गए । एक व्यक्ति का पागलपन लाखों-करोड़ों व्यक्तियों की हत्या का हेतु बन जाता है । एक व्यक्ति का पागलपन विश्व के समस्त व्यक्तियों के सुखों को छीनने का हेतु बन जाता है । जब-जब महायुद्ध हुए हैं, विश्व दुःखी और अशांत बना है । वह आर्थिक दृष्टि से दरिद्र बना । उसका अपार वैभव नष्ट हुआ | लाखों आदमी मरे । लाखों पत्नियां रोतीबिलखती रह गईं । लाखों बच्चे अनाथ हो गए । विश्व को कितनी कठिनाइयां झेलनी पड़ी । यदि हम इसके कारण की खोज करें तो हमें मिलेगा कि केवल दो-चार व्यक्तियों का पागलपन इस विनाश-लीला के लिए जिम्मेवार है। आदमी के पागलपन के सिवाय इसका दूसरा कोई कारण हो नहीं सकता। कोई बड़ा कारण नहीं खोजा जा सकता | यह सच है कि बड़े कारण को लेकर कोई बड़ा युद्ध होता ही नहीं। क्योंकि बड़ी समस्या इतनी साफ होती है कि उसे लेकर कभी लड़ाई नहीं हो सकती । हमेशा छोटी बात के लिए लड़ाई होती है और वह छोटी बात मूल कारण नहीं होती । उस लड़ाई के पीछे कारण होता है-मनुष्य का पागलपन । यह है अपने राष्ट्र को सबसे बड़ा बनाना या मानना | यह है अपने आपको विश्व-विजेता के रूप में प्रस्तुत करना । इसी पागलपन ने रक्तरंजित इतिहास का निर्माण किया है।
इस प्रकार की जितनी मानसिक विकृतियां होती हैं, वे सब मूढ़ता की छोटी-छोटी धाराएं हैं। ईर्ष्या आग है
___ ईर्ष्या भी मानसिक विकृति है, एक बीमारी है | दूसरे की प्रगति देखी और मन में एक सिकुड़न पैदा हो गयी । यह कोई अर्थवान् नहीं है, कोई
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